प्रदीप जायसवाल

भोपाल. बरसात के मौसम में भले ही ठंडक घुली हुई हो, लेकिन इस साल राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सियासत कहीं ज्यादा गर्म है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की चरण दर चरण जनआशीर्वाद यात्रा को जनता का जैसा प्रतिसाद मिल रहा है, BJP के रणनीतिकारों को लगता है उनकी मेहनत चौथी बार भी सफल होने जा रही है. उधर कांग्रेस की राजनीति भी पूरी तरह अपने शबाब पर है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ लंबे समय तक संगठन के लिए बैठकों का दौर जारी रखने के बाद अब मध्यप्रदेश को नापने निकल चुके हैं. प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के प्रमुख ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अब मौसम की परवाह किए बिना लोगों के बीच पहुंच चुके हैं. कांग्रेस के चार कार्यकारी अध्यक्षों में जीतू पटवारी की जनजागरण यात्रा भी लोगों को जगाने में लगी हुई है. नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह अपनी न्याय यात्रा, तो सावन के इस महीने में पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और उनके विधायक अनुज सचिन यादव की आस्था यात्रा भी निमाड़ में सियासी सरगर्मी बनाए हुए हैं.
दिग्गजों को अबकी बार आखिरी चांस
कांग्रेस को इस बार हरहाल में सरकार में वापसी की बड़ी चुनौती है. दरअसल, उसके रणनीतिकार और जिम्मेदार बड़े नेता इस कटु सत्य को समझ रहे हैं कि अबकी बार नहीं, तो अगली बार कम से कम उनकी अपनी नैया पार होने का तो कोई चांस नहीं है. उम्रदराज पीसीसी चीफ कमलनाथ और वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह अगले 5 साल की रिस्क लेकर नहीं चल सकते, क्योंकि तब तक पानी सिर से ऊपर निकल चुका होगा. जबकि, ज्योतिरादित्य सिंधिया, नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव सरीखे नेता यह जोखिम इसलिए नहीं उठाएंगे, क्योंकि 5 साल बाद क्या राजनीतिक समीकरण होंगे, राजनीति में उनका अपना क्या वर्चस्व होगा और दिल्ली दरबार में कौन किस पर भारी पड़ेगा यह समझ पाना और कह पाना जरा मुश्किल है.
ये पब्लिक है सब जानती है…
कांग्रेस की जैसे की तासीर है, वैसे ही चुनावी मूड और मोड में वह नजर आ रही है. नेता बिखरे-बिखरे हैं, लेकिन एकजुटता दिखाकर उसका संदेश देने में भी पीछे नहीं है. मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के कगार पर खड़े राजनीतिक दलों ने खुद को चुनावी रंग में अभी से इसलिए भी रंगना शुरू कर दिया है कि लोग अब बहकावे में नहीं, बातों में नहीं,बहानों में नहीं, वादों में नहीं, दावों में नहीं और तो और किसी प्रलोभन में नहीं आते. वे सबकुछ सब जानते हैं और सबको भलीभांति जानते हैं, इसलिए लोगों का भरोसा जीतना है, तो जमीन पर तो दिखना पड़ेगा. लोगों तक जाना पड़ेगा. खुद के दल की बातों को समझाना होगा और लोगों की भावनाओं को, उनकी बातों को गंभीरता से समझना भी होगा. वह दिन लद गए जब कहीं ना कहीं एक कमिटेड वोटबैंक होता था, जो आंख बंद करके अपने दलों के साथ हो जाया करता था. अब ऐसा नहीं है. अब तो उसकी कसौटी पर दल भी हैं, नेता भी है और प्रत्याशी भी हैं. इसके बाद ही उसका निर्णय. इस लिहाज से BJP और कांग्रेस एक-दूसरे के लिए बड़ी चुनौती तो है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती लोग हैं, जनता है, मतदाता है, जो सरकार को उसकी योजनाओं पर, उसकी बातों पर, उसके दावों पर, उसके वादों की कसौटी पर हरदम कस रहे हैं. कांग्रेस को भी बड़ी बारीकी से और गौर से देख रहे हैं कि क्या कुछ बदलाव हुआ है या फिर वही 2003 तक वाली बात है. मौका दिया तो क्या होगा. BJP से बेहतर साबित होगी कांग्रेस या फिर वही सब कुछ पहले जैसा रहेगा. सरकार में BJP है. लोगों को उस पर भरोसा ज्यादा है. कांग्रेस से भरोसा उठ चुका है. भले ही कांग्रेस के नेताओं को यह बात बुरी लगे. कांग्रेस के सामने बीजेपी से ज्यादा बड़ी चुनौती लोगों का विश्वास जीतने की है.
लोगों को फर्क नहीं पड़ता इस बात का
लोगों को इस बात का फर्क नहीं पड़ता कि bjp में शिवराज अकेले चेहरा है और उनका जादू बोल रहा है और कांग्रेस में नेता एकसाथ नजर नहीं आ रहे हैं और वह बिखरे-बिखरे हैं. प्रदेश की जनता को फर्क तो इस बात से पड़ता है कि क्या जो कहा, वह किया. यह जो कह रहे हैं उस पर कितना यकीन करें. बात लोगों के भरोसे की है और जो दल इस में कामयाब होगा पिक्चर तो उसी की हिट होगी. चुनाव का वक्त है. सर्वे भी आएंगे, जनमत संग्रह भी होंगे और बिना मतदान के BJP और कांग्रेस की सरकार भी बनती और बिगड़ती रहेगी, लेकिन असली परीक्षा तो मतदान के जरिए होना है. तब पता चलेगा कि इस बार सत्ता की चाबी किसके हाथ लगी है. सत्ता की तिजोरी की रखवाली फिर बीजेपी करेगी या मध्यप्रदेश की जनता ने अपना चौकीदार ही बदल दिया है. बहरहाल, भाजपा को यकीन है कि लोग कांग्रेस पर भरोसा नहीं करेंगे और उसकी अपनी चौथी बार भी सरकार जरूर बनेगी. कांग्रेस को लगता है पार्टी संगठन जरूर कमजोर है, लेकिन BJP से कथिततौर पर उकता आ गई जनता के इरादे इस बार बहुत मजबूत हैं. ऐसे में अब तो उसका सत्ता का वनवास समझो खत्म हुआ. BJP को दूसरी वजह मुख्यमंत्री की जनआशीर्वाद यात्रा में उमड़ रही भीड़ नजर आ रही है, तो कांग्रेस को अपने नेताओं के दौरों, कार्यक्रमों में उमड़ रहा जनसैलाब दिखाई पड़ रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जनतंत्र में भीड़तंत्र का महत्व तो पूरा है, पर सत्ता की गारंटी भी हो सकती है यह जरूरी नहीं है. हालात तो अभी हास्य और एक्शन फिल्म फटा पोस्टर निकला हीरो जैसे हैं, इसलिए मेरे दोस्त पिक्चर अभी बाकी है…


