आखिर वर्षों से महिला आरक्षण विधेयक लंबित क्यों है ?
* *आजाद सिंह डबास
लेखक भारतीय वन सेवा के पूर्व अफसर हैं
विगत दिनों कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधान मंत्री को पत्र लिखकर महिला आरक्षण पर बिना शर्त समर्थन देने का वादा किया है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राहुल गांधी बीजेपी द्वारा लाए गए तीन तलाक से संबंधित विधेयक पर कुछ कहने की बजाय महिला आरक्षण के बहाने महिला हितैषी होना साबित करना चाह रहे हैं। हकीकत यह है कि तीन तलाक के बहाने भाजपा जहां मुस्लिम महिलाओं में अपनी पेंठ बनाना चाहती है वहीं कांग्रेस महिला आरक्षण का समर्थन कर महिला हितैषी होना साबित करना चाह रही है।
ध्यान रहे कि जब केन्द्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार थी तब भाजपा ने भी बिना शर्त समर्थन देने का वादा किया था लेकिन कांग्रेस बिल पास नही करा पाई। ऐसी ही आषंका पुनः व्यक्त की जा रही है। प्रष्न यह पैदा होता है कि जब देष की दोनों मुख्य पार्टियां महिलाओं को आरक्षण देना चाहती हैं, तब महिला आरक्षण बिल संसद में पास क्यों नही हो पा रहा है ? प्रष्न यह भी पैदा होता है कि जब पिछली एनडीए सरकार संसद का साझा सत्र बुलाकर पोटा कानून पास करा सकती है तो मोदी के नेतृत्व में वर्तमान एनडीए सरकार इसी तरह महिला आरक्षण बिल क्यों नही पास करा सकती ? आम सहमति का राग क्यों अलापा जा रहा है ? गौरतलब है कि संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिषत आरक्षण देने का मसला लगभग 20 वर्ष से चर्चा का विषय बना हुआ है। विगत वर्षों में अनेक राज्यों में स्थानीय निकायों में महिलाओं को 50 प्रतिषत तक आरक्षण दिया जा चुका है। शुरुआती दौर को छोड़कर इन निकायों में महिलाओं का कार्य भी संतोषप्रद रहा है। देष की वामपंथी पार्टियां हमेषा से महिला सषक्तिकरण के पक्ष में रही हैं। महिला नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस और बसपा जैसी पार्टियां भी मोटेतौर पर इसकी पक्षधर हैं। ऐसी परिस्थिति में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिषत आरक्षण देने में क्या समस्या है ?
पिछड़ा वर्ग की राजनीति करने वाली राजद, सपा और जदयू जैसी पार्टियों की मांग रही है कि महिलाओं को दिये जाने वाले आरक्षण में ओ.बी.सी की महिलाओं के लिए पृथक से आरक्षण दिया जावे, जो उचित प्रतीत होता है। इन पार्टियों को डर है कि अगर ओ.बी.सी की महिलाओं के लिए पृथक से आरक्षण नही दिया जाता है तो महिलाओं को दिये गए आरक्षण का ज्यादातर लाभ सवर्ण वर्ग की महिलाएं ही उठांएगी लेकिन यह भी एक हकीकत है कि इन पार्टियों के सांसदों की संख्या इतनी नही है कि ये विधेयक को पास न होने दें अथवा संदन की कार्यवाही को विधिवत संचालित न होने दें। दरअसल असली समस्या यह है कि देष की दोनों ही प्रमुख पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी पिछड़ा विरोधी हैं। अगर महिला आरक्षण में ओबीसी की महिलाओं के लिए आरक्षण के अन्दर आरक्षण दिया जाता है तो इससे ओबीसी के सांसदों की संख्या में वृद्धि होगी जो ये दोनों ही पार्टी नही चाहती हैं। मेरी समझ अनुसार महिलाओं को अभी तक आरक्षण नही देने का मुख्य कारण कुछ पिछड़ा समर्थक दलों द्वारा आरक्षण के अन्दर आरक्षण चाहना नही अपितु दोनों ही मुख्य राष्ट्रीय पार्टियों (कांग्रेस एवं भाजपा) की नीयत साफ नही होना है, इसीलिए उपरी तौर पर दोनों पार्टियां महिलाओं के सषक्तिकरण का ढ़ोंग करती हैं जबकी वास्तव में ये ऐसा चाह नही रही है। यह भी एक सच्चाई है कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने 2010 में महिला आरक्षण विधेयक को राज्य सभा से मात्र इसलिए पास कराया ताकि कांग्रेस पार्टी महिला समर्थक होने का श्रेय ले सके। अगर कांग्रेस पार्टी तत्समय वास्तव में इसके लिए गंभीर होती तो इसे लोकसभा में भी पारित करा सकती थी। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की तरह संसद का संयुक्त सत्र आयोजित करके भी इसे पास कराया जा सकता था। प्रष्न यह भी पैदा होता है कि अगर कांग्रेस, भाजपा या अन्य राजनैतिक दल अगर लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं का वास्तव में प्रतिनिधित्व बढ़ते हुए देखना चाहते हैं तो वे इसके लिए आरक्षण का इन्तजार क्यों कर रहे है ? बगैर आरक्षण दिये ही ये ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को चुनाव मैदान में क्यों नही उतारती ? नवम्बर-दिसम्बर माह में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव एवं आगामी लोकसभा चुनाव में समस्त दलों को यह मौका पुनः मिल रहा है कि वे महिला आरक्षण बिल के पारित हुए बगैर ही 33 प्रतिषत सीटें अपने दल की महिलाओं को दें। ऐसा करना इन दलों के महिला हितैषी होने का वास्तविक पैमाना हो सकता है। महिलाओं को आरक्षण नही मिलने के लिए सभी पार्टियों की महिला नेता भी कहीं ना कहीं दोषी हैं। बसपा एवं तृणमूल जैसी पार्टियां जिनका नेतृत्व स्वयं महिलाएं कर रही हैं, वे भी अपनी पार्टियांे में महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व नही दे रही हैं। सभी पार्टियों द्वारा महिलाओं के साथ पक्षपात किया जा रहा है जबकि महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपना मुकाम बना रही हैं। सच तो यह भी है कि लोकसभा और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने से भी आम महिलाओं का भला नही होने वाला है। महिलाओं का सशक्तिकरण तो तभी होगा जब उन्हें राजनीति के साथ-साथ अन्य समस्त क्षेत्रों में भी आगे बढ़ने के समान अवसर मिलें।
यह समझना भी जरुरी है कि हर समस्या का समाधान आरक्षण नही है। लोकसभा और विधानसभाओं में 33 प्रतिषत सीटें आरक्षित करना महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक प्रतीकात्मक उपाय ही अधिक प्रतीत होता है। आज प्रतीकात्मक उपायों की नहीं अपितु जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं के आगे बढ़ने लायक माहौल देने की जरुरत है। भारतवर्ष में पुरुष प्रधान सोच के चलते ऐसा होना काफी मुष्किल है लेकिन अगर हमें एक विकसित राष्ट्र बनाना है, तो ऐसा करना ही होगा।
@आजाद सिंह डबास,
अध्यक्ष, सिस्टम परिवर्तन अभियान
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