0 शिवराज विरोधी नेताओं की एक ही मजबूरी
0 अबकी बार सीएम नहीं तो उम्र 70 पार
प्रदीप जायसवाल
भोपाल. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लेकर जो बीजेपी कल तक अपने को कथिततौर पर बैकफुट पर मान रही थी, आज वह फ्रंटफुट पर नजर आ रही है. दरअसल, 1 दिन पहले गुरुवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बालाघाट में बीजेपी के बड़े रणनीतिकार प्रभात झा की मौजूदगी में जो बयान दिया है, उसने पूरी की पूरी बाजी पलट कर रख दी है. अब सामान्य वर्ग की आड़ में बीजेपी के अंदर शिवराज की कुर्सी लपकने की ललक रखने वाले मुख्यमंत्री विरोधी नेता चाहे जितना जोर लगा लें, कम से कम उनकी तो दाल गलने वाली नहीं है. शिवराज ने एट्रोसिटी एक्ट को लेकर जांच के बाद कार्रवाई के निर्देश देने का जो बयान दिया है, उसने पूरा पासा ही पलट दिया है. अब शिवराज विरोधी पार्टी नेता दबी जुबान कुछ भी किंतु परंतु करें, लेकिन मध्यप्रदेश की जनता में एक साफ संदेश चला गया है कि मुख्यमंत्री न तो अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग विरोधी हैं और ना ही वे सामान्य वर्ग से किसी तरह की कोई खुन्नस रखते हैं. मुख्यमंत्री का यह ऐलान शिवराज विरोधियों के लिए केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ चले जाने के तौर पर भी दुष्प्रचारित किया जा सकता है. एट्रोसिटी एक्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के खिलाफ लोकसभा और राज्यसभा में लाए गए ऑर्डिनेंस की बिना पर शिवराज के इस बयान को कानून विरोधी करार दिए जाने की अंदरूनी कवायद भी की जा सकती है. जिन नेताओं पर मुख्यमंत्री ने भरोसा जताकर डैमेज कंट्रोल का जिम्मा सौंपा है, उनमें से कुछ अपनी ड्यूटी का ईमानदारी से निर्वहन करने के बजाय खुद की मंशा पूरी करने के लिए दिशाहीन भी हो सकते हैं. मकसद साफ है शिवराज विरोधी नेताओं को पिछड़े वर्ग का तो साथ चाहिए, लेकिन अब बहुत हुआ ओबीसी के शिवराज का चेहरा वे किसी भी सूरत में देखना नहीं चाह रहे हैं. दरअसल, मजबूरी यह है कि 15 साल की सरकार में शिवराज का कुल जमा 13 साल का मुख्यमंत्री का कार्यकाल हो चला है और जो पार्टी नेता 60 के थे, वे 73 में पहुंच गए हैं और 55 वाले 68 के उम्रदराज हो चले चले हैं. ऐसे में वे खुद को मुख्यमंत्री ना देख पाने की कल्पना से ही सिहर उठते हैं. शिवराज विरोधी ऐसे नेताओं का मतलब बिल्कुल साफ है कि बीजेपी की चौथी बार सरकार तो बने, लेकिन मुख्यमंत्री तो कोई और हो जिनमें उनमें से भी कोई एक चेहरा शामिल हो. बड़ा सवाल इस बात का है कि बीजेपी में क्या sc-st और सामान्य वर्ग के रणनीतिकार और दिग्गज नेता नहीं है. क्या वे समाज, वर्ग और जाति के लिहाज से अपने-अपने सामाजिक संगठनों को यह बात नहीं समझा सकते हैं कि जो कुछ हुआ है, वह सुप्रीम कोर्ट, उसके बाद केंद्र सरकार के अध्यादेश और कानून के कारण हो रहा है न कि इसमें शिवराज की कोई चाल या साजिश है. लेकिन वे बेमतलब ऐसा करेंगे क्यों. शिवराज विरोधी नेताओं को बीजेपी की सरकार बनाने के लिए शिवराज का साथ तो चाहिए, लेकिन सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री तो कोई और ही होना चाहिए. मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए अपनी ही पार्टी की हवा बिगाड़ रहे शिवराज विरोधी नेता खुद की लाटरी लग जाने के फेर में चुनाव तक बहुत कुछ गुल खिला सकते हैं. मजबूरी सिर्फ एक और एक ही है, अबकी बार सीएम नहीं तो फिर उम्र 70 पार.
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