विशेष अपडेट… वीडी शर्मा

जन आशीर्वाद यात्रा

जन आशीर्वाद यात्रा

1. जवाबदेह राजनीति का शिलालेख

2. जवाबदेह राजनीति का रश्मिरथी

विष्णु दत्त शर्मा

जब कोई देश स्वयं को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करता है तो जन-आकांक्षाओं के प्रति उसकी प्रतिबद्धता और जवाबदेही भी उतनी ही बड़ी हो जाती है। लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र की थाती जिन हाथों में गयी, उन्होंने लोकतंत्र के प्रति जवाबदेह होने के बजाय उसका गला घोंटने तक में कोई गुरेज नहीं दिखाई। इसका सबसे बड़ा उदाहरण आपातकाल की वह काली छाया है जिसकी आड़ में भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जनता को जवाब देने के बजाय उसका घोर दमन किया गया।

ऐसे में मध्यप्रदेश में तीसरी बार जन आशीर्वाद यात्रा के जरिये प्रदेश की जनता के द्वार पर खड़ी भाजपा की शिवराज सरकार ने लोकतंत्र में एक साहस की संस्कृति का संचार किया है। डेढ़ दशक का कार्यकाल पूरा कर रही किसी सरकार में यदि जनता के बीच जाकर हिसाब देने का साहस है तो बेशक वह भारत के लोकतंत्र में एक अनुपम उदाहरण ही कहा जायेगा। लोकशाही की यात्रा के सात दशक पूरा कर चुके देश में विरले ही किसी मुख्यमंत्री ने अपना खाताबही लेकर जनता के बीच जाने का जोखिम उठाया हो। ऐसी बानगी किसी सरकार में अथवा किसी भी दल में अभी तक देखने को नहीं मिली। चुनावी समर में रस्म अदायगी के लिए अपना कृत्रिम रिपोर्ट कार्ड लेकर ढिंढोरा पीटना दीगर बात है लेकिन चुनाव में जाने से पहले जनता के बीच जाकर हिसाब देना और रह गई कसर को समझने की कोशिश करना, यह कहानी स्वतंत्र भारत के लोकतंत्र की किसी किताब में दर्ज नहीं हो सकी है। लेकिन अन्त्योदय की प्रेरणा से चलने वाली भाजपा सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान पूरे दमखम से चौथी बार जनता के बीच उपस्थित हैं, अपनी तेरह बरस की उपलब्धियों का हिसाब लेकर आशीर्वाद मांगने। इस मायने में यह अहम बात है कि एक नेता के रूप में, एक मुख्यमंत्री के तौर पर और पार्टी के लिहाज से हमने बीते पांच साल में क्या किया है और आगे क्या करेंगे? हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ऐसे संवाद की आदत नहीं रही है। जनता जनार्दन के दर पर हिसाब-किताब की यह बानगी भारत के सभी राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के लिए लोकशाही का सुनहरा सबब है। जिसे समग्रता में समझने और अनुकरण की जरूरत है।

दरअसल, यह स्थिति लोकतांत्रिक समाज में तभी बनती है जब सरकार चलाने वाले दल और उसके नेतृत्व में जन भावनाओं के प्रति संवेदनात्मक इच्छाशक्ति हो। अन्यथा इसी देश में प्रचंड बहुमत की सरकारें कार्यकाल पूरा करते ही विज्ञापनों से पटे अखबारों के पन्नों से अपना मुंह छिपाती हैं और लोकमत भी उनको धूल चटाने में कोई कसर नहीं छोड़ता। याद किजिए कि सामाजिक न्याय आंदोलन के दौर में कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों के ऊभार और उनकी ताजपोशी ने हमें ऐसे कितने दृश्य दिखाए हैं। एक ओर देश में जातिवाद, दलित राजनीति, पिछड़ा वर्ग ध्रुवीकरण, तुष्टीकरण जैसे हथकंडे अपनाकर अनेक दलों ने जनता को छला है तो दूसरी ओर नरेंद्र मोदी और शिवराज सरकार ने सबका साथ-सबका विकास की संकल्पना को साकार किया है। यही वजह है कि कोई मुख्यमंत्री चौथी बार सरकार बनाने के लिए जनता की अदालत में बेहिचक और बेधड़क खड़ा है। जहां उसकी पैरवी उसकी योजनाएं और उसके पीछे की भावनाएं कर रही हैं।

संबल योजना से लेकर मेधावी विद्यार्थी योजना तक अनेक योजनाएं जहां मील का पत्थर हैं, वहीं गर्भ से लेकर अंतिम संस्कार तक के लिए दी जाने वाली सहूलियतों ने शिवराज सरकार की संवेदनशीलता की अनूठी इबारत लिखी है। इसलिए जो हितग्राही हैं वे आगे आकर जन आशीर्वाद यात्रा में अपने नेता को आशीष दे रहे हैं। लोग तख्तियों पर धन्यवाद लिखकर अपनी भावनाओं का समन्दर उड़ेल रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान तेंदुपत्ता संग्राहकों द्वारा सरकार से मिली चरण पादुकाओं और पानी के कूप्पे लेकर सीएम का स्वागत करने का मंजर हो या लाडली कन्यादान योजना, विद्यार्थी मेधावी योजना के लाभान्वित बच्चों की माताओं का उमड़ता हुआ स्नेह का सैलाब हो या फिर मुख्यमंत्री तीर्थ योजना में सांसारिक कर्तव्यों की अंतिम इच्छा पूरी कर चुके बुजुर्गों का आंचल, इन सभी नजारों में जनता के भावुक अन्तर्मन के दर्शन होते हैं। उज्जवला योजना से बूढ़ी आंखों के आंसू थामने और प्रधानमंत्री आवास के जरिए जर्जर हो चुकी झोपड़ियों की जगह सपनों का आशियाना बनाने जैसे अनगिनत प्रयास भाजपा के प्रेरणा पुरुष पं. दीनदयाल उपाध्याय के अन्त्योदय का प्रतिमान सिद्ध हुए हैं।

पं. दीनदयाल कहते थे कि लोकमत का परिष्कार नहीं होने से लोकतंत्र कमजोर होता है। राजनीतिक दल का उद्देश्य सिर्फ चुनाव जीतना नहीं, बल्कि वह समाज को बदलने के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। लिहाजा भाजपा नेतृत्व ने समाज को बदलने की जवाबदेह राजनीति की नींव रख दी है। वंशवाद की बेल पर लटके नेताओं के सामने दीनदयाल उपाध्याय की जवाबदेह राजनीति का यह सबक अब मोदी युग में शिलालेख बनकर उपस्थित है। सियासत की सीढ़ी चढ़ने के लिए बेमेल जोड़े बना रहे राजनीतिक दलों को भी अब यह समझना होगा कि जब एक प्रधानमंत्री और उसकी पार्टी अपनी सरकार के चौथे पड़ाव पर सम्पर्क फॉर समर्थनका एक अभिनव कदम उठाती है तो बेशक वह लोकतंत्र में उत्तरदायित्व की नई पगड़ंडी गढ़ रही होती है।

बदलते दौर में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने जिस शिद्दत से लोकमत के बीच जाने का उपक्रम किया है वह भविष्य की सियासत का ऐसा रोडमैप है जिस पर सभी को चलना पड़ेगा। मोदी एपके जरिए जनता और कार्यकर्ताओं से लोकमन को समझने की कोशिश कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया भर के राजनीतिज्ञों और विशेषकर भारत के नेताओं को यह जता दिया है कि लोकशाही में लोकमत से बड़ी कोई मीडिया नहीं है। दरअसल, संवाद का यह सिलसिला भारत में जवाबदेह राजनीति का शिलालेख है।

इस क्रम में निर्विवाद तथ्य है कि राजनीतिक दृष्टि से शिवराज सिंह चौहान की जन आशीर्वाद यात्रा को चुनावी अभियान के नजरिए से बाहर निकल कर देखा जाना चाहिए। इसलिए कि साल2008 में फिर 2013 में और अब 2018में किसी एक पार्टी के किसी एक नेता द्वारा यदि आशीर्वाद यात्रा के माध्यम से अपनी सरकार के काम-काज का आकलन किया जा रहा है तो यह लोकतंत्र के लिए शुभ लक्षण हैं। वरना एंटी-इनकम्बेन्सी (सत्ता विरोधी लहर) के मानस से ग्रस्त सरकारें और उसके नेता अल्प कार्यकाल में ही पराभव मान बैठते हैं तथा वास्तव में नकार भी दिये जाते हैं। इसका कारण यही है कि वे जनता से संवाद के सारे सेतु गिरा देते हैं और जनता के लिए उनके दरवाजे बंद मिलते हैं।

इस अर्थ में जन आशीर्वाद यात्रा के जरिए प्रदेश के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति के पास जाकर उससे ही आशीर्वाद या समर्थन मांगने का धैर्य दिखाना अन्त्योदय की प्रेरणा और नरेंद्र मोदी की साफ नीयत की राजनीति का प्रमाण है। सहज ही यह कल्पना कीजिए एक दूर दराज गांव के किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री से मिलना कितना संभव है? शायद असंभव ही है। इस अर्थ में यह यात्रा असंभव को संभव बनाने की एक यात्रा है। यात्रा के दौरान हर दिन हजारों-लाखों लोग प्रदेश के मुखिया से न केवल प्रत्यक्ष मिल रहे हैं बल्कि अपनी समस्याओं का त्वरित समाधान भी पा रहे हैं। इस यात्रा में गरीब व सामान्य आदमी भी सीधे सीएम से संवाद कर रहा है। उसका हर दुख दर्द दूर हो रहा है। गंभीर बीमारी से ग्रस्त कोई गरीब इनसान हो या शासन की किसी योजना से वंचित कोई आम आदमी, सीएम सीधे उसके दरवाजे पर जाकर उसका दामन थाम रहे हैं।

जवाबदेही के लिए जन आशीर्वाद यात्रा का जो रथ शिवराज सिंह चौहान लेकर निकले हैं वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उत्तरदायित्व (अकाउंटबिलिटी) और जनता से सीधा संवाद का अनूठा प्रयास है जो देश-दुनिया के सभी राजनीतिक नेतृत्वकर्ताओं के लिए प्रेरणा पुंज बन सकता है। यह यात्रा इस बात की तस्दीक है कि राजनीति में हर किसी को जवाबदेह बनना पड़ेगा। यह यात्रा यह भी संदेश देती है कि एंटी इनकम्बेंसी वहां हरगिज नहीं होती जहां की सरकार काम करती है। जो सरकार निरंतर संवाद करती है उसे विरोधी लहर का फोबिया नहीं सताता। बल्कि वह सरकार सम्पूर्ण साहस के साथ जनता के बीच जाने की इच्छाशक्ति रखती है।

धरातल पर जाकर हकीकत से रूबरू होना और फिर सच्चाई का संज्ञान लेना सुशासन (गुड गवर्नेंस) की दिशा में भी भगीरथ प्रयास है। बेशक ब्यूरोक्रेसी की संवेदनहीनता और उदासीनता के कारण सरकार की अनेक योजनाएं हितग्राही तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती रही हैं। लिहाजा सत्ता के शीर्ष नेतृत्व का जनता से सीधे जुड़ना, लोकतंत्र की सेहत के लिए भी एक अचूक दवा सिद्ध हुआ है। आज मध्यप्रदेश ही नहीं पूरे देश की नौकरशाही जवाबदेही के साथ सक्रिय हुई है। सरकारी योजनाएं जमीन पर समग्रता में कारगर हुई हैं। इससे एक ओर जहां भाजपा नेतृत्व के साफ नीयत की इस नीति से समूचे शासन तंत्र को जवाबदेह बनाने में कामयाबी मिली है, वहीं अपनी सरकार के काम-काज को लोकहित की कसौटी पर कसने की कोशिश में निकला शिवराज का रथ उन्हें रश्मिरथी भी बनाता है।

लेखक मध्यप्रदेश भाजपा के महामंत्री हैं।

Pradeep Jaiswal

Political Bureau Chief

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