
0 सत्यम सिंह बघेल
शिक्षक दिवस भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान विचारक थे। उनका पुण्य स्मरण फिर एक नई चेतना पैदा कर सकता है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अपनी बुद्धिमतापूर्ण व्याख्याओं, आनंददायी अभिव्यक्ति से छात्रों को प्रेरित करते थे कि वे उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारें। उनकी मान्यता थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाए तो समाज की अनेक बुराइयों को मिटाया जा सकता है। उनका कहना था कि योग्य शिक्षक वही है जिसके अंदर एक विद्यार्थी जिंदा रहता है। एक शिक्षक सच्चे शिल्पकार की तरह है जो अपने विद्यार्थियों को ज्ञान प्रदान करके उन्हें योग्य और प्रतिभावान नागरिक बनाता है, इसलिए किसी भी देश को महान और गौरवशाली बनाने में शिक्षकों की अहम भूमिका होती है।
यह सच है कि शिक्षक की हमारे जीवन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। गुरु हमारे चरित्र का निर्माण करते हैं। शिक्षक के पास वह कला है जो मिट्टी को सोना में परिवर्तित कर सकता है। हर किसी की सफलता की नींव में एक शिक्षक की भूमिका अवश्य होती है।
इसलिए शिक्षक का जीवन सदैव सीखने और सिखाने में व्यतीत होना चाहिये। शिक्षक का प्रयास सदैव अपने रचनात्मक विचारों द्वारा छात्र के आचरण को ऊंचा करने के लिए होना चाहिए। उनका यही लक्ष्य होना चाहिए कि वे विद्यार्थीयों के जीवन में बदलाव लाकर उन्हें ऊंचाई की ओर ले जाएं। विद्यार्थी के अंदर छुपी प्रतीभा को बाहर निकालने का प्रयास करके और हमेशा यह विश्वास दिलाएं कि वे कुछ कर सकते हैं, वे कुछ बन सकते हैं। एक अच्छे शिक्षक में प्रेरणा, सहनशीलता और सकारात्मकता होनी चाहिए। किसी छात्र को उसको वास्तविक गुणों अवगुणों से उसका परिचय कराना ही सच्चे शिक्षक का परिचय है।एक बेहतरीन शिक्षक सदैव नई ऊर्जा और प्रेरणा का संचार करता है।
मात्र जानकारियां देना शिक्षा नहीं है, बल्कि शिक्षा का लक्ष्य है ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना और निरंतर सीखते रहने की प्रवृत्ति। वह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को ज्ञान और कौशल दोनों प्रदान करती है तथा इनका जीवन में उपयोग करने का मार्ग प्रशस्त करती है। करुणा, प्रेम और श्रेष्ठ परंपराओं का विकास भी शिक्षा के उद्देश्य हैं। जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होता और शिक्षा को एक लक्ष्य नहीं मानता तब तक अच्छी शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती। सम्मान, शिक्षक होने भर से नहीं मिलता, उसे अर्जित करना पड़ता है।
विद्यालय और विश्वविद्यालय गंगा-यमुना के संगम की तरह शिक्षकों और छात्रों के पवित्र संगम हैं। बड़े-बड़े भवन और साधन सामग्री उतने महत्वपूर्ण नहीं होते, जितने महान शिक्षक। विश्वविद्यालय जानकारी बेचने की दुकान नहीं हैं, वे ऐसे तीर्थस्थल हैं जिनमें स्नान करने से व्यक्ति को बुद्धि, इच्छा और भावना का परिष्कार और आचरण का संस्कार होता है। उच्च शिक्षा का काम है साहित्य, कला और व्यापार-व्यवसाय को कुशल नेतृत्व उपलब्ध कराना। उसे मस्तिष्क को इस प्रकार प्रशिक्षित करना चाहिए कि मानव ऊर्जा और भौतिक संसाधनों में सामंजस्य पैदा किया जा सके।
शिक्षक का काम है ज्ञान को एकत्र करना या प्राप्त करना और फिर उसे बांटना। उसे ज्ञान का दीपक बनकर चारों तरफ अपना प्रकाश विकीर्ण करना चाहिए। सादा जीवन उच्च विचार की उक्ति को उसे अपने जीवन में चरितार्थ करना चाहिए। उसकी ज्ञान गंगा सदा प्रवाहित होती रहनी चाहिए। उसे’गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुदेवो महेश्वरः/ गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः’ वाले श्लोक को चरितार्थ करके दिखाना चाहिए। इस श्लोक में गुरु को भगवान के समान कहा गया है।