कौन देगा कमलनाथ को अंदरूनी फीडबैक 0आंतरिक महाभारत का सजीव प्रसारण करने वाला ‘संजय’ कौन 0प्रदीप जायसवाल

भोपाल. मध्यप्रदेश की राजनीति विधानसभा चुनाव के मद्देनजर शनै:-शनै: अब अपने शबाब पर आने लगी है. कांग्रेस की बात करें तो कमलनाथ जब अध्यक्ष बने तो मुकाबला बिल्कुल कड़ा हो गया. लेकिन बीच में ऐसा भी लगा कि कांग्रेस का ग्राफ बहुत ज्यादा ऊपर नहीं जा पाया है. फिर कमलनाथ ने राजनीतिक हलकों में छा रहे इस भ्रम को तोड़ते हुए अपना संगठन कौशल और शक्ति दिखाना शुरू की, तो लगा अभी तो यह अंगड़ाई है… कमलनाथ ने संगठन को समझने के बाद रफ्तार पकड़ी और कांग्रेस को दोबारा बीजेपी के मुकाबले खड़ा करने की कोशिश की है. कमलनाथ ने पार्टी संगठन में जिनकी रिपोर्ट अच्छी नहीं थी, उनकी जमकर खबर ली. कुछ फैसले कड़े थे, तो कुछ फैसले गलत फीडबैक से बिगड़े भी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता माणक अग्रवाल की विदाई को अप्रिय तौर पर आज भी लिया जा रहा है. प्रदेश कांग्रेस संगठन प्रभारी उपाध्यक्ष चंद्रप्रभाष शेखर से लोगों की नाराजगी अभी बनी हुई है. आईटी सेल से डॉ. धर्मेंद्र वाजपेई को हटाया जाना और फिर उन्हें प्रदेश का प्रवक्ता बनाने का फैसला तो गलती को दुरुस्त करना माना जा रहा है, लेकिन प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रहे केके मिश्रा का फ्रंटलाइन पर नहीं दिखाई देना, कौतूहल और चर्चा का विषय बना हुआ है. कांग्रेस की मीडिया अध्यक्ष श्रीमती शोभा ओझा की ‘तोल मोल के बोल’ की कार्यशैली कुछेक नेताओं को रास नहीं आ रही है. कई मामलों के दागी अभय तिवारी की आईटी सेल में नियुक्ति किसी को भी पच नहीं पा रही है. यह कमलनाथ के ऐसे कैसे आंख, नाक और कान हैं, जो गलत निर्णय करवाने पर तूले ही रहते हैं. कमलनाथ के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा, मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता, अभय दुबे, प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता जेपी धनोपिया, रवि सक्सेना, पंकज चतुर्वेदी, दुर्गेश शर्मा, संगीता शर्मा समेत तमाम प्रवक्ता और पीसीसी पदाधिकारी कांग्रेस का बेड़ा पार लगाने की जद्दोजहद में दिखाई तो देते हैं पर कहीं न कहीं समन्वय और तालमेल की कमी भी साफ दिखाई पड़ती है. कांग्रेस की अंदरूनी महाभारत का शोर कभी-कभी कमरों से निकलकर बाहर मैदान में भी सुनाई पड़ता है. कांग्रेस मुख्यालय के ग्राउंड फ्लोर से लेकर तीसरे माले तक पार्टी पूरी तरह सक्रिय तो दिखाई पड़ती है, लेकिन सुर कहीं न कहीं जुदा भी सुनाई पड़ते हैं ठीक अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग की तरह. पीसीसी चीफ कमलनाथ के भोपाल में रहने के दौरान तो सब कुछ ठीक-ठाक नजर आता है, लेकिन जब वे प्रदेश को नाप रहे होते हैं, तब नजारा कुछ और होता है. दरअसल, चुनाव के वक्त पीसीसी में पसरा सन्नाटा खुद यह बयां कर देता है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ इस वक्त दौरे पर हैं. जिन जिम्मेदार नेताओं को इस वक्त मैदान में दिखाई देना चाहिए,वे अपना टिकट का लक्ष्य साधने भोपाल से लेकर दिल्ली तक परिक्रमा कर रहे हैं और जिन्हें कमलनाथ की शक्ति बनकर खड़े होना है, वे अंदरूनी तौर पर वर्चस्व की जंग में खुद ही लड़खड़ा रहे हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि कमलनाथ ने संगठन में जमावट तो खूब की है. बैठकों का दौर बदस्तूर जारी है, शायद आंतरिक कलह को जानने और समझने के लिए जिम्मेदार नेताओं से अभी 1-2-1 बाकी है. बेशक, जिन नेताओं को जो जिम्मेदारी मिली है, वे अपना काम बखूबी कर ही रहे होंगे, लेकिन वह अपने तक ही सीमित हैं या फिर पीसीसी चीफ को कुछ सच्चाई बताने की हिमाकत भी कर रहे होंगे. सबसे बड़ा सवाल यही है कि कांग्रेस के आंतरिक महाभारत को सीधेतौर पर देखने के लिए कमलनाथ का ‘संजय’ कौन है, जो इसकी प्रस्तुति सही और प्रभावी ढंग से कर सके. आखिर कमलनाथ को यह सब फीडबैक देगा कौन. updatempcg.com

Pradeep Jaiswal

Political Bureau Chief

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