कांग्रेस नेता के.के. मिश्रा ने निजी तौर पर प्रज्ञा और संघ पर उठाए सवाल

पुलिस-सेना के परिवार से सम्बद्ध और एक सच्चे भारतीय राष्ट्रवादी होने के कारण शुक्रवार से ही प्रज्ञासिंह भारती (राजधानी भोपाल से भाजपा प्रत्याशी) द्वारा शहीद हेमंत करकरे को लेकर कही गई अक्षम्य बातों को लेकर अत्यंत बैचेनीवश पूरी रात सो नहीं सका, करवटें बदलता रहा कि प्रज्ञा के इस गंभीर अपराध को लेकर एक ज़हरीली विचारधारा से इस घिनौनी हरकत पर जवाब-सवाल करूँ किन्तु हमारे नेता माननीय दिग्विजयसिंह (सच्चे हिन्दू) के उस आदेश से भयभीत था,जिसमें उन्होंने हम प्रवक्ताओं को कुछ सामयिक हिदायतें दी हैं,किन्तु उनसे अत्यंत क्षमा मांगते हुए मैं मज़बूर हूँ, इसलिए कि इतना सब कुछ होने पर भी ख़ामोश रहा तो इस विचारधारा के खिलाफ़ सीधा संघर्ष करने वाले के रूप में मेरी जिंदगी बेकार है,इसलिए आज माननीय दिग्विजयसिंह से पुनः क्षमा प्रार्थना करते हुए यह वैचारिक अपराध कर रहा हूँ….हालांकि प्रज्ञा ने भारतीय सेना के नाम पर पूरे देश में वोटों की भीख मांगने वाले अपने “आकाओं ” के कहने पर इस अक्षम्य कुकृत्य से किनारा कर लिया है,पर देश के मानस पटल भी यह तथ्य फिर अंकित हो गया कि “असली देशद्रोही कौन है “, लिहाज़ा,मेरे इन नितांत व्यक्तिगत विचारों पर देश- भारतीयसेना न हमारे शहीदों के प्रति अपना सच्चा सम्मान व्यक्त करने वाला नागरिक वैचारिक स्पंदन जरूर करे,यह विनम्रतापूर्वक साग्रह है….
भोपाल निर्वाचन क्षेत्र में प्रज्ञासिंह ठाकुर को भाजपा से प्रत्याशी बनाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कबीले से कुछ ज्वलंत सवाल…… यह कहा ही नहीं जा रहा है,बल्कि सच भी है कि प्रज्ञा ठाकुर को आनन-फानन भाजपा की सदस्यता दिलवाकर बतौर भाजपा प्रत्याशी संघ कबीले ने ही बनवाया है….कहा जाता है कि संघ कथित हिंदुत्व,देशभक्ति व राष्ट्रवाद का पैरोकार भी है ! यह भी सच है कि संघ की गंभीर पहल पर प्रत्याशी बनी प्रज्ञा,संघ के ही प्रचारक,कई बम ब्लास्टों में प्रज्ञा के सहयोगी रहे,इंदौर जिले के महू तहसील में हुए आदिवासी नेता प्यारसिंह निनामा हत्याकांड के आरोपी और 11अक्टूबर,2007 को अजमेर बम ब्लास्ट प्रकरण में जयपुर की विशेष अदालत द्वारा गत 8 मार्च,2017 को सुनाए गए फैसले जिसमें संघ प्रचारक भावेश पटेल,देवेन्द्र गुप्ता व (मौत हो जाने के बाद भी दोषी पाए गए सुनील जोशी) को उम्र कैद की सजा सनाई गई है।इनमें से सुनील जोशी की हत्या की आरोपित रही हैं ! हालांकि अपराधियों,अभियोजन पक्ष की मिलीभगत व उच्चस्तरीय राजनैतिक दबाव के बाद साक्ष्य के अभाव में वे बरी हो गई हैं…ऐसी स्थिति में संघ कबीले के वास्तविक चरित्र पर एक सभ्य समाज में वैचारिक चर्चाएं/बहस होना लाज़मी है?
लिहाजा,संघ कबीले से यह जानना जरूरी है कि….
(1)क्या यह झूठ है कि 29 दिस.2007 को अजमेर सहित अन्य बम विस्फोटों से संबद्ध संघ प्रचारक सुनील जोशी की देवास जिले में हुई हत्या में प्रज्ञा ठाकुर आरोपित नहीं थी,मालेगांव ब्लास्ट में गिरफ्तार सुनील जोशी प्रज्ञा का खास मददगार नहीं था,क्या मालेगांव ब्लास्ट में प्रज्ञा द्वारा प्रयुक्त मोटर सायकिल सुनील जोशी की नहीं थी?
अपनी विचारधारा को समर्पित व आपराधिक चरित्रों को समर्पित लोगों से पहले विध्वंस कराना, राज खुलने के डर से बाद में उनकी ही हत्या करवा देना कौन सा राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और धर्म है?
(2)क्या यह भी झूठ है कि संघ के ही दबाव में देवास पुलिस ने इस हत्याकांड का वर्ष 2008 में खात्मा काट दिया था,ऐसा क्यों हुआ,इसमें भाजपा के किस बड़े नेता की भूमिका सामने आई थी?
(3)क्या देश में विगत वर्षों मालेगांव,मक्की मस्जिद(हैदराबाद),अजमेर शरीफ दरगाह,समझौता एक्सप्रेस,पूर्णा,परभणी, जालना,नांदेड़ व इंदौर जिले के महू में हुए विभिन्न विस्फोटों में हुई गिरफ्तारी व वरिष्ठ प्रचारकों के सामने आए नामों में प्रज्ञा ठाकुर,स्वामी दयानंद पांडेय,स्वामी असीमानंद,हर्षद सोलंकी,कर्नल श्रीकांत पुरोहित,मेजर रमेश उपाध्याय,समीर कुलकर्णी,संदीप डांगे,रामजी कलसांगरा,श्याम साहू,शिवम् धाकड़ व चंद्रशेखर लेवे सहित अन्य कई नाम कौन हैं,उनका संघ से क्या रिश्ता है?
(4)क्या यह भी झूठ है कि जनवरी,2013 में तत्कालीन गृह सचिव और अब नरेन्द्र मोदी जी के मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री पद पर काबिज श्री आर.के.सिंह ने यह नहीं कहा था कि- “RSS INVOLED IN TERROR BLASTS IN INDIA”?
(5) क्या यह भी झूठ है कि इन्हीं हालातों के चलते संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत को नागपुर में यह कहना पड़ा था कि” संघ में कुछ अपराधी प्रवृत्ति के लोग घुस आए हैं,जिन्हें हमने संघ से निकाल दिया है?
अब यहां था प्रश्न उठना भी लाज़मी है कि जो संघ कबीला 1925 में हुए अपने गठन के 94 सालों बाद भी आज तक अपना पंजीयन नहीं करा सका है,जिसका कोई पृथक संविधान नहीं है,जिसकी मेंबरशीप भी नहीं है,तो भागवत जी ने निकाला किसे?
(6) क्या यह भी झूठ है कि वर्ष 1993 में चेन्नई में? संघ मुख्यालय में बम बनाते हुए विस्फोट में छः स्वयंसेवकों की मौत हुई थी,क्या चेन्नई का संघ मुख्यालय भारतीय सेना का शस्त्रागार था?
(7)इसी वर्ष धार जिले के भारतीय जनता पार्टी के दफ्तर में बम निर्माण करने के दौरान हुए विस्फोट में एक शासकीय शिक्षक गंभीर रूप से घायल हुआ था,एक पार्टी के राजनैतिक दफ्तर में बम किसलिए बनाया जा रहा था?
(8)गत मार्च,2019 में ही प्रदेश के सेंधवा तथा छतरपुर में पुलिस द्वारा कि गई छापामार कार्यवाही में संघ/भाजपा नेता के घरों/गोदामों से भारी मात्रा में कई रिवाल्वर/पिस्टल सहित विस्फोटक सामग्री बरामद हुई है।जहां पंडित दीन दयाल उपाध्याय व गोलवरकर,सावरकर का साहित्य मिलना चाहिए,वहां रिवाल्वर,पिस्टल,बम,विस्फोटक?
संघ यह भी प्रचारित करता है कि “संघ-परिवार (कबीला) और उसकी लगने वाली शाखाएं राष्ट्रवादी विचारों की प्रेरणस्थल हैं,जहां देशभक्तों का निर्माण होता है”?तब उसे यह भी स्पष्ट करना होगा कि उसके द्वारा निर्मित देशभक्त विस्फोटों के लिए बमों का निर्माण क्यों करते हैं?
संघ कबीले के इस संदिग्ध प्रामाणिक चरित्र को देखते हुए यह जानना भी जरूरी है कि क्या ” गांधी जी की हत्या जैसा कुकर्म भी उसकी विचारधारा के सांस्कृतिक एजेंडे का हिस्सा कहा जा सकता है?
बात यहीं खत्म नहीं होती है….गत 12 दिसंबर,2017 को संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत ने नईदिल्ली में 50 देशों के दूतावास कर्मियों के साथ संपन्न संवाद कार्यक्रम में सार्वजनिक रूप से कहा था कि” न संघ भाजपा को चलता है और न ही भाजपा संघ को, ” इसके बाद गुरुवार को ही प्रदेश के एक प्रमुख समाचार पत्र ने खबर प्रकाशित की है कि संघ के दखल से प्रज्ञा ठाकुर सहित कई टिकट भाजपा की सूची में शामिल हैं?क्या भागवत जी भी नरेंद्र मोदी जी के समान झूठ बोलते हैं?
टिकट प्राप्ति के बाद प्रज्ञा इसे धर्मयुद्ध बता रहीं हैं।शायद भारतीय दर्शन व वास्तविक धर्म से अनभिज्ञ प्रज्ञा यह नहीं जानती हैं कि “राजनीति का धर्म है दया,करूणा, प्रेम,साहस, विश्वास,एकरूपता व सहिष्णुता”…यही नहीं “धर्म शालीनता की शाला और मानवता का मदरसा है”, ” धर्म संकीर्णता की गंध नहीं, सहिष्णुता की सुगंघ है”…जिस पर उन्हें भरोसा नहीं है!

भारतीय स्वतंत्रता को नाज़ है कि वह अहिंसा की साधना और तप का परिणाम है,गांधी ने जिस गणतंत्र की आत्मा अहिंसा से रची थी,उसे ” प्रज्ञा सिंह ठाकुर जैसों का उपयोग कर धर्म व हिंदुत्व के नाम पर संघ कबीला रणतंत्र में तब्दील करने पर आमादा है।इन कुत्सित चालों और पैंतरे बाज़ी से हम सभी को बचने की आवश्यकता है। मैं यहां एक मर्तबा फिर यह भी स्पष्ट कर देना चाहूंगा कि संघ कबीले को लेकर यह विचार पूर्णतः मेरे निजी हैं,उन्हें आहत करने के लिए नहीं हैं,किन्तु आज़ाद मुल्क के एक विनम्र नागरिक के रूप में मुझे प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नाते मैं अपनी व्यक्तिगत जिज्ञासाओं को शांत करना जरूर चाहूंगा।यह भी एक ऐतिहासिक सच है कि संघ कबीले से वैचारिक असहमति रखने वाले उसकी दृष्टि में “देशद्रोही” की श्रेणी में माने जाते हैं, यदि ऐसा है तो वह भी मुझे कबूल होगा।

सादर

के.के.मिश्रा

Pradeep Jaiswal

Political Bureau Chief