• पीसीसी चीफ के लिए प्रदेश नेतृत्व को बढ़ाना चाहिए बेहिचक नाम
• राहुल के लिए फायदेमंद होगा सिंधिया का साथ
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दैनिक जयहिन्द न्यूज़
भोपाल। सियासत में हार, जीत तो लगी रहती है। राहुल गांधी सरीखे नेता अपने ही परंपरागत गढ़ अमेठी से हार गए। कई तमाम नेता धराशाई हो गए और तो और गुना, शिवपुरी से दिग्गज युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया भी हार गए। फिर दिग्विजय सिंह की हार को बड़ी हार मान लेना बेमानी होगा।
कांग्रेस में इस वक्त अफरातफरी का माहौल है। न राहुल गांधी समझ पा रहे हैं और ना ही कांग्रेस के रणनीतिकार। करें तो क्या करें। मोदी मैजिक के आगे सब बेहाल और हलाकॉन। मध्यप्रदेश में इस समय जोरशोर से यह गूंज हो रही है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ना चाहते हैं। यह अप्रत्याशित भी नहीं है, बल्कि जरूरी और व्यावहारिक भी है। वक्त का तकाजा भी यही है। कमलनाथ सरकार चलाएं और संगठन की कमान कोई और नेता संभाले। खुद सीएम नाथ को भी कोई गुरेज नहीं है। इस पद पर ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों ने एक बार फिर चुनाव से पहले और चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बनाने की मांग की तर्ज पर सिंधिया को पीसीसी चीफ बनाने की मांग तेज कर दी है। बेशक! सिंधिया एक मुखर और प्रखर युवा नेता हैं, लेकिन मध्यप्रदेश से ज्यादा सिंधिया की जरूरत इस वक्त राहुल गांधी को है। उन्हें पहले की तरह सदन ना सही, संगठन के बाहर साथ देते रहना चाहिए। मध्यप्रदेश में भले ही बीजेपी की सरकार का पतन हो चुका है, मगर यह बात नहीं भूलना चाहिए कि आज भी लोगों पर शिवराज का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है। शिवराज का मुकाबला करने का यदि कोई माद्दा रखता है, तो वह सिर्फ और सिर्फ दिग्विजय सिंह हैं। बीजेपी से ज्यादा संघ इस बात को भलीभांति समझ गया होगा कि साध्वी की जीत के लिए भोपाल में उसे कितने जतन करने पड़े हैं। दिग्विजय सिंह ने 10 साल तक मध्यप्रदेश को नापा है और नौकरशाही से लेकर जनता तक में उनकी गहरी पैठ है। कार्यकर्ताओं को भी दिग्विजय पर पूरा भरोसा है और नेताओं के बीच भी दिग्विजय का पूरा मान-सम्मान है। कमलनाथ सरकार से पहले विधानसभा चुनाव में वे कोऑर्डिनेटर के तौर पर अपनी सफल भूमिका साबित कर चुके हैं। बीजेपी और शिवराज को कांग्रेस चुनौती देने की रणनीति पर काम कर रही है, तो फिर उसे कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी को अगले चुनाव तक पूरा मौका देना ही चाहिए। प्रदेश नेतृत्व को भी पीसीसी चीफ के लिए दिल्ली तक दिग्विजय सिंह का नाम बढ़ाना होगा और ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी खुद खुले मन से आगे आकर इसकी पहल करनी होगी। भले ही दिल्ली दिग्विजय की नई भूमिका राष्ट्रीय स्तर पर तय करना चाहे, लेकिन इस वक्त मध्यप्रदेश को और कमलनाथ को दिग्विजय की ज्यादा जरूरत है। उम्र के लिहाज से 70 पार दिग्विजय ने जिस तरह हजारों किलोमीटर की नर्मदा परिक्रमा की है, उससे एक बार फिर उनका जुनून और जज़्बा सामने आया है। कांग्रेस को सत्ता की चाबी मिली है तो उसमें तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह की पदयात्राओं का भी योगदान है। मध्यप्रदेश की जनता अभी शिवराज की तरह कोई ऐसा कांग्रेसी पांव-पांव वाला भैया चाहती है, जो सिर्फ चुनाव के वक्त नहीं, बल्कि 5 साल तक इस तरह उसके बीच पहुंचकर दुःख-दर्द में शामिल हो। यदि यह काम ज्योतिरादित्य सिंधिया से हो या किसी और नेता से, तब दिग्विजय सिंह जरूरत नहीं है मध्यप्रदेश की। वरना, कोई और नहीं है, तो फिर दिग्विजय सिंह का कोई विकल्प ही नहीं है।updatempcg.com
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