• खण्डवा मध्यप्रदेश से संजय चौबे की रिपोर्ट
खण्डवा UPDATE/ दैनिक जयहिन्द न्यूज़। मध्यप्रदेश के खण्डवा में गुरु- शिष्य परंपरा की अनूठी मिसाल पेश की जा रही है। गुरु पूर्णिमा महोत्सव के तहत खण्डवा में अवधूत संत केशवानंद जी बड़े दादाजी महाराज और उनके शिष्य हरिहरानंद जी छोटे दादाजी महाराज की समाधियों पर निशान ( झंडा ) चढ़ाने का सिलसिला शुरू हो गया है। अब तक 1 लाख लोग गुरु की समाधियों पर माथा टेक खुशहाली की कामना कर चुके हैं। 14 से शुरू यह महोत्सव 16 जुलाई तक चलेगा। इस दौरान देश-विदेश से 5 लाख भक्तों के समाधि दर्शन का अनुमान लगाया जा रहा है।
मध्यप्रदेश के खण्डवा में दूर-दूर से भक्तों का समाधि पर पहुचने का सिलसिला शुरू हो गया है। दादाजी धाम के रूप में देश-विदेश में ख्यात यह स्थल करोड़ों भक्तों की अटूट आस्था और अडिग विश्वास का प्रमुख केंद्र है। इस परिसर की धुलाई, पुताई कर इसे आकर्षक विद्युत सज्जा से सजाया गया है। पूरे परिसर में बेरिकेड्स लगाकर भक्तों को शांति और सुविधा से दर्शन कराए जा रहे हैं। शहर की चारों दिशाओं से भक्त भजलो दादाजी का नाम भजलो हरिहरजी का नाम भजते हुए कई किलोमीटर पैदल चलकर निशान चढ़ाने आ रहे हैं। ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाचते-गाते भक्तों का सैलाब समाधि स्थल पर उमड़ रहा है। इस मंदिर 24 घण्टे दर्शन की अटूट परंपरा होने से भक्तों का तांता लगा हुआ है। 14 जुलाई से शुरू इस महोत्सव में 16 जुलाई तक 5 लाख भक्तों के आने का अनुमान लगाया जा रहा है। पूरे परिसर की कमरों से निगरानी की जा रही है। भक्तों की सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध जिला प्रशासन ने किए हैं। श्री 1008 केशवानंदजी बड़े दादाजी महाराज अवधूत संत थे। बड़े दादाजी महाराज के जन्म के विषय मे किसी को कोई जानकारी नही है। 1930 में वे बड़वाह से खण्डवा आए। चार दिन पश्चात 3 दिसंबर 1930 रविवार को महासमाधि ली ।
श्री छोटे दादाजी राजस्थान के ढींडवाना ग्राम के थे। उनका नाम भौरीलाल था। माता-पिता का बचपन मे निधन हो गया। दादाजी ने उनका नाम हरिहरानंद रखा। श्री बड़े दादाजी के साथ ही वे साईं खेड़ा से उज्जैन, बड़वाह होते हुए खण्डवा आए थे। 1930 में श्री बड़े दादाजी के समाधिस्थ होने के बाद से उन्होंने श्री दादा दरबार खण्डवा का उत्तरदायित्व संभाल लिया। 5 फरवरी 1942 को उन्होंने समाधि ली। UPDATEMPCG.COM
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