• प्रदीप जायसवाल
भोपाल, UPDATE/जयहिन्द न्यूज़। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने जो खेल खेला, उस खेल ने पूरी बाजी ही पलट कर रख दी। 15 साल की सरकार जिम्मेदार नेताओं के कारनामों से फिसलकर कांग्रेस के हाथ चली गई। एमपी के कुछ बड़े नेता खुद चाहते थे, बीजेपी की सरकार तो आ जाए पर किसी भी सूरत में श्रेय शिवराज को नहीं मिलना चाहिए। शिवराज की इंसल्ट करने का दौर कुछ यूं चला कि 200 पार का नारा देने वाली सरकार खुद को मजबूत करार देने वाली कमजोर कांग्रेस से हार गई! अपने ही घर में आंख की किरकिरी बन गई शिवराज सरकार का पतन कुछ उस लघु कथा की तरह हुआ जैसे अभिषेक के लिए एकत्रित किए जाने वाले दूध के स्थान पर सबने यह सोचकर पानी उड़ेल दिया कि उसके एक गिलास पानी से क्या फर्क पड़ना है। सवाल उठ सकता है क्या 7 महीने की सरकार के बाद यह प्रसंग प्रासंगिक है। दरअसल, यह प्रसंग प्रासंगिक इसलिए भी है कि बीजेपी ने अपनी गलतियों से अब तक कोई सबक लिया ही नहीं है! लगता है बीजेपी की 15 साल की सरकार तो चली गई, पर जिम्मेदार नेताओं का अहंकार अब भी बरकरार है। एक तरफ लोकतंत्र की दुहाई और दूसरी तरफ एमपी में बार-बार सरकार गिराने या खुद-ब-खुद गिर जाने की भभकी। टाइगर अभी जिंदा है! बॉस का इशारा हो जाए! एक नंबर और दो नंबर, बस इशारा कर दे! और अब खेल कांग्रेस ने शुरू किया है खत्म हम करेंगे! जैसे लगभग फिल्मी डायलॉग। क्या हश्र हुआ। अब बीजेपी के लिए मध्यप्रदेश में साख बचाने के भी लाले पड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आरोप पर विधानसभा में क्रॉस वोटिंग से पहले खुद जता दिया था और चेता भी दिया था कि यह तो अपना अपना स्टाइल है! कमलनाथ के मास्टर स्ट्रोक ने बीजेपी की फील्डिंग ही बिगाड़कर रख दी। 230 सदस्यों की विधानसभा में 116 के जादुई आंकड़े को छूने के लिए 121 तक पहुंची कांग्रेस ने घर में घुसकर बीजेपी से ही 2 एक्स्ट्रा छिन लिए। शिवराज, गोपाल भार्गव, दांवपेच बताते रहे और कमलनाथ ने तगड़ा दांव खेल दिया। अब नौबत खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे…! मध्यप्रदेश में बिल्ली के भाग से छींका टूटा नहीं, जमकर छीछालेदार हुई और दिल्ली अलग खफा हो गई। यह बात 100 फ़ीसदी सही है, मध्यप्रदेश में शिवराज किसी भी बड़े नेता को फूटी आंख सुहा नहीं रहे हैं। जब तक शिवराज है, एमपी बीजेपी की फ्रेम में लाख जतन के बावजूद कोई दूसरा दिग्गज फिट हो ही नहीं सकता। और शिवराज का दिल दिल्ली जाने के लिए मानता नहीं। बेशक! एक मजबूत विपक्ष के नाते बीजेपी, कांग्रेस सरकार को घेर रही है, लेकिन एक-दूसरे नेता को नीचा दिखाने का खेल अब भी बदस्तूर जारी है। सरकार के पतन के बाद बीजेपी के जिम्मेदार नेताओं ने सड़क से लेकर सदन तक चीख-चीख कर चुनौती दी, सरकार में दम हो तो जांच करा ले। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। जो कमलनाथ साइलेंट मोड पर विकास की राह पर आगे बढ़ना चाह रहे थे, अब वे बीच-बीच में बीजेपी सरकार के कथित घपले, घोटालों की जांच के बैरियर भी खड़े करते चले जा रहे हैं। फिलहाल, ईटेंडरिंग स्कैम इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। बीजेपी के रणनीतिकारों को बखूबी यह समझ लेना चाहिए कि जब एक नंबर और दो नंबर के इशारे की बात हो रही थी, तब मोदी कैंप में खासी पैठ रखने वाले आत्मविश्वास से लबरेज मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा था कि वे ऐसा कभी नहीं करेंगे। कम से कम एमपी बीजेपी के लिए सीएम का यह संदेश तो स्पष्ट और साफ है। फिर भी यह सियासत है। देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि सरकार 5 साल तक लगातार पिच पर इसी तरह धुआंधार बल्लेबाजी करती रहेगी या फिर रस्सी जल गई पर बल नहीं गए की तर्ज पर दंभ भर रही बीजेपी बीच में ही इस खेल को खत्म जरूर करेगी! UPDATEMPCG.COM
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