UPDATE MPCG…शिव क्या हैं…..?

शिव‘ प्रेम के वो अनुत्तरित उत्तर हैं, जहाँ प्रश्न की सीमाओं की रेखा मिट जाती है. ‘शिव’ वह स्थिति हैं, जहाँ किसी भिखारी की माँग, साम्राज्यों के विस्तार को भी छोटा कर देती है. ‘शिव’ नचिकेता के उन प्रश्नों जैसे हैं जिनको सुन, ‘यम’ भी पल भर के लिए ठिठुर जाते हैं. l ‘शिव’ वह भस्म हैं जिसे हर जीवन मस्तक पर सजा, मृत्यु की दुल्हन का स्वयंवर रचने चलता है.l ‘शिव’ उस जाग्रत सन्यासी जैसे हैं, जिसे पता है कि वह जन्मों का भिखारी है. ‘शिव’ वह देवता हैं जो महलों में भी खण्डहरों के दीप जलाते हैं. ‘शिव’ ऐसे कृष्ण हैं जो सभी वरदानों और अभिशापों से परे हैं,’शिव’ वह राम हैं जो तपस्वी होकर भी राजा हैं,. ‘शिव’ वह वैराग्य हैं, जिसमें जीवन का अभिनव राग समाहित है. ‘शिव’ का दायरा बहुत व्यापक है, वे काल से परे महाकाल हैं, सर्वव्यापी हैं, सर्वग्राही हैं. सिर्फ भक्तों के ही नहीं बल्कि देवताओं के भी संकटमोचक हैं, उनके ‘ट्रबल शूटर’ हैं.

जहाँ 'भगवान राम' का व्यक्तित्व 'मर्यादित' है, 'भगवान कृष्ण' का व्यक्तित्व 'उन्मुक्त' है वहीं 'भगवान शिव' का व्यक्तित्व 'असीमित' है. वे आदि हैं और अंत भी. शायद इसीलिए बाकी सब देव हैं, केवल 'शिव' 'देवाधिदेव महादेव' हैं. 'शिव' का पक्ष 'सत्य का पक्ष' है. लोक कल्याण के लिए वे हलाहल पीते हैं. शोक, अवसाद और अभाव में भी उत्सव मनाने की उनकी विशेषता है. 'शिव' का नृत्य श्मशान में भी होता है. श्मशान में उत्सव मनाने वाले वे अकेले देवता हैं. वे हर वक्त समाज की सामाजिक बंदिशों से आजाद होने, खुद की राह बनाने और जीवन के नए अर्थ खोजने की चाह में रहते हैं. विषम परिस्थितियों से अद्भुत सामंजस्य बिठाने वाला उनसा कोई दूजा नहीं है. 'शिव' इसलिए 'शिव' नहीं हैं कि उन्होंने विष पिया, बल्कि 'शिव' इसलिए 'शिव' हैं, क्योंकि उन्हें पता था कि यह विष है तब भी पिया. किसी को तो पीना ही था. 'शिव' होने के लिए अपनी ज़िन्दगी का ज़हर नहीं बल्कि दूसरों की ज़िंदगी में आने वाले ज़हर को पीना होता है. देवाधिदेव महादेव का विराट शिवत्व हम सभी को प्रेरणा देता रहे....

Pradeep Jaiswal

Political Bureau Chief

Leave a Reply