
पहली बार 1952 में राजनीतिक पार्टी के चंदे के लिए कॉरपोरेट सेक्टर को खोला गया था – सरकार कांग्रेस की थी और कोई राजनीतिक दल देश में कार्य नहीं कर रहे थे
1962 मे नियम बना – 25000 तक का नगद चंदा कोई भी कॉरपोरेट सेक्टर किसी राजनीतिक दल को दे सकता है ( उस समय 25000 की राशि आज के परिदृश्य में निश्चित करोड़ों की कीमत रखती थी ) सत्ता कांग्रेस की थी और अन्य राजनीतिक पार्टियां नहीं थी ।
1985 – सत्ता कांग्रेस की, कॉरपोरेट सेक्टर के चंदे की सीमा उस व्यापारी के कुल लाभ का 5% तक रखा गया वह भी नगद।
2013 – कांग्रेस सरकार ने कॉर्पोरेट से मिलने वाले चंदे की सीमा 5 से बढ़ाकर 7.5% की वह भी नगद
2017 में एक महान लुटेरी, भ्रष्टाचारी सरकार ने किसी नगद चंदे को 20000 तक सीमित किया और इससे अधिक की राशि के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम लेकर आए यह इलेक्टोरल बांड सिर्फ बैंक से मिलने की व्यवस्था की गई और बैंक में 20000 से ऊपर का नगद लेनदेन वैसे ही नहीं किया जाता है अर्थात किसी को 20000 से ऊपर का इलेक्टोरल बांड खरीदना है तो उसको बैंक में नंबर एक का पैसा ही देना पड़ेगा । किंतु सत्ता परिवर्तन होने पर अन्य राजनीतिक पार्टी दुर्भावना ना निकाले इसलिए इनका नाम उजागर करने की बाध्यता नहीं रखी गई ।
अब बुद्धिजीवी का आकलन
✓कॉरपोरेट सेक्टर से राजनीतिक पार्टियों के लिए चंदा लेने की व्यवस्था शुरू करने वाली ,
✓1962 में 25000 की नगद सीमा तय करने वाली ,
✓कुल आय की 5% राशि नगद रूप से चंदा ले सकने की व्यवस्था करने वाली
✓5% नगद को बढ़ाकर 7.5% नगद प्राप्त करने की व्यवस्था करने वाली पार्टी की तुलना में
वह सरकार भ्रष्ट है जिसने इलेक्टोरल बांड के जरिए राजनीतिक चंदे को बैंक के जरिए प्राप्त करने की व्यवस्था की
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