


बुरहानपुर। समुद्र से भी गहरी है शिव महापुराण। समुद्र में डूबोंगे तो मर जाओंगे और श्री शिव महापुराण में डुबोंगे तो तर जाओंगे। इन दोनों का पार पाना मुश्किल है।
यह बात बुरहानपुर में आयोजित श्री शिव महापुराण कथा के चतुर्थ दिवस पर पंडित प्रदीप मिश्रा ने कही। उन्होंने कहा कि जैसे समुद्र में जल सबके लिए है और समुद्र के जल में कोई मोती खोजता है तो कोई मछली और अधिकतर मनचले तो सिर्फ जल को पैर मारकर उसकी फोटो खिंचवाकर ही खुश हो जाते है। वैसे ही श्री शिव महापुराण कथा भी सबके लिए है। यहां जो मोती (शिव) खोजने आता है वो शुद्ध भक्ति भाव में डूबकर सबसे पीछे और जहां जगह मिली वहां से एकाग्र चित होकर कथा का श्रवण करता है और जो मछली ढूंढने आता है वो कथा स्थल की कमियां और यहां बुराईयां ढूंढकर जाता है तो तीसरा जो समुद्र में जल को पैर मारने वाले होते है उसी प्रकार कथा में आने वाले इस तीसरी श्रेणी के भक्तों को भी भगवान का आशीर्वाद मिल जाता है। शिव जी विश्वास और भक्ति के भुखे है। उनसे आपने भरोसा छोड़ा तो भोला भी तुमको छोड़ देंगा। क्योंकि भोलेनाथ तो भोले है जो आया सो पाया। आपने लाईन छोड़ी तो भोले ने लाईन तोड़ी। इसलिए देर अवेर हो सकती है पर भोले से भरोसा मत तोड़ना।
कथा में पंडित प्रदीप मिश्रा ने कथा संयोजक एवं पूर्व मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस (दीदी) से वार्तालाप का प्रसंग सुनाते हुए बताया कि अर्चना जी बोली वो और उनके पूर्वज श्री राम-कृष्ण की भक्ति में लगे रहे किन्तु श्री शिव महापुराण के विषय में उन्होंने कुछ अधिक पढ़ा या सुना नहीं था। पिछले कुछ वर्षांे मंे जब श्री शिव महापुराण पर भक्तों से सुना तो तो जिज्ञासा वश श्री शिव महापुराण को मन से पढ़ा भी और दिल लगाकर सुना भी। फिर मन में आया कि मां ताप्ती के पावन तट पर ब्रघ्नपुर में श्री शिव महापुराण कथा का आयोजन कराना चाहिए। फलस्वरूप यह आयोजन तय होकर अत्यंत नियोजित एवं सफलतम कथा की श्रेणी को छू रहा है। जिसके लिए अर्चना दीदी और ब्रघ्नपुर की श्री शिव महापुराण समिति का हर सदस्य-पदाधिकारी साधुवाद का पात्र है।
पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि सामान्य ग्रहस्थ और समस्या ग्रस्त व्यक्ति को समझाईश देते हुए कहा कि जैसे संत, महात्मा को भी रोग और दुःख आते है किन्तु वह अपना भगवान से नाता और भरोसा नहीं तोड़ते, क्योंकि संत जानता है प्रभु की कृपा बनी हुई है और आगे भी जन्मो-जन्मो तक बनी रहेगी। इस प्रकार संत का भरोसा कभी डोलता नहीं है। आपने इस प्रसंग में रामायण के श्रीलंका कांड अंतर्गत रावण द्वारा सीता जी के पास श्री जटा (राक्षसी) की तैनाती को लेकर विभिषण द्वारा श्री जटा को सुनाए गए शिव भक्ति की कथा को सुनाया।
पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि जब मिट्टी का दिया रातभर अंधेरे से लड़ सकता है तो भगवान का दिया हुआ तू इंसान जीवन की छोटी-छोटी समस्या से क्यों नहीं लड़ सकता। समस्या आने पर भगवान बदलना और भटक कर तंत्र-मंत्र, छू-मंतर अर्थात् तात्कालिक हल के लिए भोले को भूल जाने वाले को बाद में पछताना पड़ता है। इसलिए भगवान से भरोसा मत छोड़ना। भय में जीने की आदत को छोड़ो। एक लोटा जल चढ़ाओं, सब दुःख गल जाएंगे। उन्होंने कहा कि अपने भक्ति के बल को बढ़ाओ तो भगवान खुद आपको ढूंढेंगा। हम अपनी दृढ़ता और विश्वास को नहीं बढ़ा रहे है यही समस्या का सबसे बड़ा कारण है।
पंडित प्रदीप मिश्रा ने श्री अश्वत्थामा शिव महापुराण कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जैसे श्री कृष्ण ने अपने बाल सखा सुदामा के सत्कार में कोई कमी नहीं रखी, वैसा राजा दु्रपद के दरबार में द्रोणाचार्य जी को शायद मित्रवत सम्मान की अपेक्षा पूरी नहीं हो सकी। अर्थात् अपने बच्चों और परिवार को ऐसे मित्र अथवा अपने से बड़े व्यक्ति (सत्ताधीश) के पास ले जाने से पूर्व व्यक्ति को सौ बार सोचना चाहिए अन्यथा दुःखी होने की संभावना अधिक बनती है।