भोपाल. यूं तो देशभर में अगडे़, पिछड़ों और एससी-एसटी वर्ग की राजनीति जमकर हो रही है, लेकिन मध्यप्रदेश में अपने ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घेरने के लिए वर्ग विशेष के नेता अंदर ही अंदर खिचड़ी पका रहे हैं. दरअसल,ये वे नेता हैं, जो शिवराज का खुलकर सामना नहीं कर सकते हैं, लेकिन वे कमर के नीचे वार करने से नहीं चूक रहे हैं. एक सोची समझी रणनीति के तहत पार्टी में बहाना इस बात का बनाया जा रहा है कि इस वक्त BJP से ज्यादा शिवराज से सवर्ण नाराज हैं. सपाक्स की राजनीति उफान पर है, जो भाजपा की नैया डुबो सकती है. इससे निपटना है, तो ऐसा डैमेज कंट्रोल करना होगा कि बीजेपी आगे और शिवराज पीछे चले जाएं. दलील दी जा रही है कि BJP को इस चुनाव में बड़ी और कड़ी चुनौती मिल रही है, क्योंकि इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का वह बड़ा बयान जिम्मेदार है, जिसमें उन्होंने ताल ठोक कर कहा है कि कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता है. भाजपा के अंदरखाने की मानें तो शिवराज विरोधी नेताओं को BJP की परवाह कम और पिछड़े वर्ग के मुख्यमंत्री की कुर्सी लपकने की चिंता कहीं ज्यादा है. एक पिछड़े वर्ग के मुख्यमंत्री की छवि लोगों के बीच इस तरह बनाई जा रही है कि वे अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के कट्टर समर्थक हैं और सामान्य वर्ग के घोर विरोधी हैं. मध्यप्रदेश के वर्ग विशेष के नेताओं की शिवराज विरोधी यही चाल दिल्ली में कुछ-कुछ हलचल पैदा करने की कोशिश कर रही है. मजेदार बात यह है कि शिवराज विरोधी नेता एट्रोसिटी एक्ट के बहाने पिछड़े वर्ग को साधने का उपक्रम तो कर रहे हैं, लेकिन उन्हें पिछड़े वर्ग का मुख्यमंत्री बर्दाश्त नहीं हो रहा है. कभी इस बात को ऐन-केन प्रकारेण तूल दी जा रही है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ज्यादा खफा हैं इसलिए वह मध्यप्रदेश के दौरे में उनसे हर बार रूखा व्यवहार करते हैं.उन्हें तवज्जो नहीं देते हैं और तो और अब शिवराज पर केंद्रीय नेतृत्व को बिलकुल भरोसा नहीं है, इसलिए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह खुद इस चुनाव में मध्यप्रदेश में डेरा डालने वाले हैं. उधर शिवराज की जनआशीर्वाद यात्रा में उमड़ रहा जनसैलाब भी ऐसे कुछ नेताओं को रास नहीं आ रहा है, इसलिए वे कुछ घटनाओं के बहाने मौका मिलते ही जन आक्रोश पनपने जैसी चिंताएं जरूर जाहिर कर रहे हैं ताकि उन्हें अपने मकसद में किसी न किसी तरह कामयाबी हासिल हो सके. अपनी इस मंशा को अंदर ही अंदर अंजाम तक पहुंचाने में लगे ऐसे कुछ नेता शिवराज के खास करीबी और बीजेपी के रणनीतिकार भी बने हुए हैं. लब्बोलुआब यह है कि शिवराज विरोधी नेताओं को पिछड़े वर्ग का मुख्यमंत्री फूटी आंख नहीं सुहा रहा है. इसी रणनीति पर काम करते हुए कुछ ऐसी जमावट की जा रही है, ताकि चुनाव से पहले पार्टी के अंदर और बाहर जानबूझकर यह महसूस कराया जा सके कि अगर मध्यप्रदेश में चौथी बार सरकार बनानी है, तो चेहरा तो बदलना होगा. BJP में शिवराज के साथ खुलकर खड़े दिखाई दे रहे ऐसे नेताओं की पीठ में वार करने की भनक खुद मुख्यमंत्री को भी है. भोपाल से लेकर दिल्ली तक यह भ्रम और डर भी फैलाया जा रहा है कि bjp के लिए इस बार चुनौती कड़ी और बड़ी इसलिए हो गई है कि कमलनाथ ने कांग्रेस में कमान संभाल ली है और ज्योतिरादित्य सिंधिया उनके साथ कदमताल कर रहे हैं. अंदरखाने की माने तो शिवराज ने भी ऐसे नेताओं को चिन्हित कर लिया है और उनसे दूरी बनाने का काम शुरू कर दिया है.इन नेताओं में कुछ मंत्री, सांसद और विधायक भी शामिल हैं. जबकि, एट्रोसिटी एक्ट के बहाने छिपकर शिवराज पर वार करने वाले संगठन के कुछ पदाधिकारी भी बेनकाब हो चुके हैं. शिवराज के साथ डबल क्रॉस की राजनीति करने वाले ऐसे नेताओं की अब बोलती बंद हो सकती है. updatempcg.com
