नमस्ते ! राज्य सभा टीवी एक न एक दिन तो जाना ही था ।हाँ थोड़ा जल्दी जा रहा हूँ ।सोचा था जून जुलाई तक और उस चैनल की सेवा कर लूँ , जिसे जन्म दिया है ।लेकिन ज़िंदगी में सब कुछ हमारे चाहने से नहीं होता।कोई न कोई तीसरी शक्ति भी इसे नियंत्रित करती है ।आप इसे नियति,क़िस्मत,भाग्य या भगवान-कुछ भी कह सकते हैं ।सो यह अवसर फ़रवरी में ही आ गया । अजीब सा अहसास है ।सात साल कैसे बीत गए,पता ही नहीं चला।लगता है कल की ही बात है ।कुछ भी तो नहीं था ।शून्य से शुरुआत ।कितनी चुनौतियाँ ,कितने झंझावात । कभी लगता -चैनल प्रारंभ नहीं हो पाएगा ।लोग हँसते थे – संसद के चैनल में क्या दिखाओगे ? सदन की कार्रवाई ? कौन देखेगा ? राज्यसभा टीवी में नया क्या होगा ? कितनी आज़ादी मिलेगी ? वग़ैरह वग़ैरह । मैं और मेरे साथी निजी क्षेत्र के चैनलों या अख़बारों से आए थे ,इसलिए संसद की कार्रवाई के कवरेज का अनुभव तो था ,लेकिन संसद के नियमों के मुताबिक़ अन्दरूनी कामकाज में अनाड़ी ही थे । फिर भी क़ायदे – क़ानून की मर्यादा और सीमित संसाधनों से आग़ाज़ तो कर ही दिया । यह पहले दिन से ही साफ़ था कि हम संसद के चैनल हैं । सदन में जिस तरह सभी दलों को अपनी आवाज़ रखने का अधिकार और अवसर मिलता है ,उसी तरह हमने राज्यसभा टीवी को भी सच्चे अर्थों में संसद का चैनल बनाने का प्रयास किया ।हर राजनीतिक दल को समुचित प्रतिनिधित्व दिया और बिना किसी पूर्वाग्रह के हर लोकतांत्रिक आवाज़ को मुखरित किया । अनेक साथी पत्रकारिता में सौ फ़ीसदी निष्पक्षता की बात करते हैं ।पर मेरा मानना है कि सौ फ़ीसदी निष्पक्षता नाम की कोई चीज़ नहीं होती ।निजी चैनलों में भी नहीं । ऐसा कौन सा चैनल या अख़बार है ,जिसका कोई मैनेजमेंट न हो । अगर मैनेजमेंट है तो उसके अपने हित होंगे