
मजदूर और निम्न आय वर्ग सारी जिंदगी याद रखेगा यह दुर्दशा : जनता कांग्रेस
नईदिल्ली : जनता कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ माहताब राय ने आज जारी अपने वकतव्य में मोदी सरकार की व्यवस्थाओं पर कड़ा प्रहार करते हुए बताया कि #औरंगाबाद में सोते हुए 16 मजदूर मालगाड़ी की चपेट में आ गए। पर, इसके #जिम्मेदार वे कभी नहीं होंगे जिन्होंने आँख बंद कर 4 घंटे के नोटिस पर पूरे देश में #लॉकडाउन लागू कर दिया। कहा गया था इससे कोरोना वायरस की चेन टूटेगी। नतीजा सामने हैं। संक्रमण अपने चरम की तरफ तेजी से बढ़ रहा हैं। आज पूरे देश में 56342 संक्रमित हो चुके हैं। मौतों का आंकड़ा भी 2000 छूने को बेताब हैं। इसके साथ ही, अब भूख और हादसे से मौतों का सिलसिला भी शुरू हो चुका हैं।
लखनऊ से भी खबर है। जानकीपुरम में रहने वाला एक मज़दूर परिवार साइकिल से निकला था। छत्तीसगढ़ जा रहा था। शहर की सीमा पर किसी ने टक्कर मार दी। माता पिता की मौत हो गई। दो बच्चे हैं। अब उनका कोई नहीं है।
ये केवल संख्या बनकर रह गए हैं। लॉकडाउन के बाद ये वर्ग अकेले सड़कों पर चल रहें हैं इसलिए ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। पहले से ही हर तरह से इनकी स्थिति देश में दयनीय थी। इनके रहन सहन की अवस्था हो ,कार्य करने का माहौल हो,सामाजिक या आर्थिक सुरक्षा हो या फिर स्वास्थ्य, शिक्षा की अधिकार हो। इस पूंजीवादी व्यवस्था ने काम के बिना इन्हें दो दिन भी सर्वाइव करने लायक नहीं छोड़ा है तभी तो लॉकडाउन के दो दिन बाद ही ये सड़कों पर चल पड़े।
नासिक हाइवे पर पैदल चलते बिहार के एक मजदूर की मौत हो गई. चलते हुए अचानक 6 बजे उसे चक्कर आया और उसकी मौत हो गई. नासिक हाइवे पर छह घंटे तक लाश पड़ी रही. लोग पुलिस को सूचना देते रहे. रात नौ बजे पुलिस ने आकर शव उठाया. टीवी9 की खबर बता रही है कि मजदूर की भूख प्यास से मौत हुई है, उसके बारे में यह कोई नहींं जानता कि वह कौन है और बिहार में कहां का रहने वाला है.
रवि मुंडा नागपुर से झारखंड पैदल जा रहे थे. साथ में सात मजदूर और थे. घर लौटना जरूरी हो गया था. कोई साधन नहीं मिला तो पैदल चल पड़े. 1200 किलोमीटर पैदल चलने के बाद बिलासपुर पहुंचे थे. रवि की तबियत अचानक बिगड़ गई. अस्पताल में भर्ती कराया गया. डॉक्टर ने बताया कि हार्ट अटैक से मौत हो गई है. सभी के टेस्ट किए गए, किसी को कोरोना नहीं था. रवि मुुंडा का शव अंंतिम संस्कार के लिए किसी संस्था को दे दिया गया, बाकी सात मजदूर झारखंड के लिए रवाना हो गए हैं. किसी खबर में यह सूचना नहीं मिल सकी कि वे सातों पैदल गए हैं या किसी वाहन से.
गुजरात के अंकलेश्वर से एक मजदूर उत्तर प्रदेश के लिए निकला था. वडोदरा पहुंचकर उसकी मौत हो गई. मजदूर की लाश सड़क के किनारे झाड़ी में बरामद हुई. घटनास्थल पर उसकी साइकिल भी बरामद हुई है. मृतक की पहचान उत्तर प्रदेश निवासी राजू साहनी के रूप में हुई है. किसी राहगीर ने राजू के लिए एंबुलेंस बुलाई.
जनता कांग्रेस प्रमुख डॉ राय ने यह भी बताया कि झारखंड के 56 मजदूर सूरत के एक शो-रूम में काम करते थे. 42 दिन फंसे रहे. फिर मजदूरों को भेजे जाने की छूट हुई तो इन लोगों ने मिलकर एक बस बुक कराई. बस वाले ने कुल 2 लाख 24 हजार रुपये में बस बुक की. सबने मिलकर पैसा जुटाया और 2 लाख 24 हजार रुपये अदा किया. बस वाले ने लाकर गिरीडीह छोड़ दिया. उसके बाद सबको अपने घर जाने के लिए पैदल चलना पड़ा. कोई सौ किलोमीटर पैदल चला, कोई 50 किलोमीटर.
देश के हर बड़े शहर से सूचनाएं हैं कि मजदूर अब भी पैदल भाग रहे हैं. यह संंख्या करोड़ में है. इनमें महिलाएं हैं, बच्चे हैं, बुजुर्ग हैं, बीमार हैं, अक्षम हैं. ऐसे भी लोग हैं जिनके पास खाने को कुछ भी नहीं है.
लॉकडाउन को अब 45 दिन हो गए हैं. लॉकडाउन के दो तीन बाद से यह भगदड़ शुरू हुई थी. तब यह बहाना था कि इतनी जल्दी इतने बड़े देश में करोड़ों लोगों की व्यवस्था नहीं हो सकती. अब 45 दिन बाद कौन सा बहाना है?
गरीब जनता की, मजदूरों, किसानों की कीमत यह देश कब समझेगा, कब समझेगा उनकी तकलीफों और समस्याओं को ये भार ढोते है देश का ,ये भार ढोते है हर उस इकाई का जो देश को मजबूत करते है, बहुत तकलीफ़ होती है जब उनके साथ पराया जैसा व्यवहार होता है, सही भी है यह प्रकृति का नियम है जो अच्छे इंसान की कीमत कभी नहीं होती उसे कोई नहीं समझता जैसे कभी बच्चे अपने मा बाप का प्यार नहीं समझ पाते है
इस देश का दुर्भाग्य है कि देश का निर्माण करने वाले करोड़ों लोगों को मरने के लिए उनके हाल पर छोड़ दिया गया है.
आज लगभग 45 दिन बाद भी #मजदूर बेबस और लाचार हैं। दिन-रात पटरियों पर चल रहे हैं और पटरियों पर ही सो रहे हैं। देश में अनाज का बफर स्टॉक हैं। बावजूद इसके वे हफ़्तों से भूखे हैं। उनके पास ऑप्शन नहीं हैं जहाँ हैं वहीं रहे तो भूख से मरेंगे …और वहाँ नहीं रहे तो #हादसे तो इंतज़ार कर ही रहे हैं। इनके जैसे लाखों तो इस उम्मीद में #गाँवों की तरफ बढ़ रहे होंगे कि कम से कम मौत तो अपनी मिट्टी में आएगी।। लेकिन, बदनसीबी भी ऐसी कि इन अभागे मजदूरों के हाथ तो वो भी नहीं रही। श्रद्धाजंलि।
डॉ राय ने कहा कि बहरहाल, खुश हो जाइए… 12 देशों में फंसे भारतीयों को पूरे तामझाम के साथ घर पहुँचाने का #क्रांतिकारी सिलसिला शुरू हो चुका हैं। इनकी संख्या 1 लाख 93 हजार बताई जा रही हैं। दूरदर्शी सरकार की इस खतरों से भरी सोच को नमन।
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