पदोन्नति से वंचित शिक्षकों को है पदनाम की उम्मीद

उपचुनावों से पूर्व आर-पार की लड़ाई के लिए एकजुट हो रहे शिक्षक

भोपाल. मध्यप्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग और आदिम जाति कल्याण विभाग में बिना पदोन्नति 30 से 40 वर्षों से एक ही पद पर सेवा दे रहे सहायक शिक्षक/शिक्षकों को पदोन्नति की प्रत्याशा में योग्यता, अनुभव और प्राप्त क्रमोन्नत वेतन के आधार पर पदनाम दिए जाने का इंतजार है। इस संबंध में समग्र शिक्षक संघ के प्रंताध्यक्ष श्री सुरेश दुबे और संजय तिवारी के नेतृत्व में शिक्षकों का प्रतिनिधि मंडल मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान से मिला। इस प्रतिनिधि मंडल में मप्र सहायक शिक्षक/शिक्षक संयुक्त संघर्ष मोर्चा भोपाल के संभागीय संयोजक महावीर शर्मा भी उपस्थित थे।

मप्र सहायक शिक्षक/शिक्षक संयुक्त संघर्ष मोर्चा के प्रांत संयोजक श्री सुभाष शर्मा एवं दिनेश चाकणकर के अनुसार मुख्यमंत्री द्वारा 5 सितम्बर 2017को की गई घोषणा के बाद विभागीय स्तर पर प्रस्ताव पिछले 4 वर्षों से विचाराधीन है, जिस पर विधि और सामान्य प्रशासन विभाग पूर्व में सहमति दे चुका है, प्रस्ताव में समय समय पर लगाई गई आपत्तियों के चलते कई बार बदलाव भी हुए, यहां तक कि पिछली शिवराज सरकार में मामला कैबिनेट के एजेंडे तक में शामिल हो चुका है, लेकिन चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण पदनाम के मुद्दे पर निर्णय नहीं हो सका था, श्री चाकणकर के अनुसार पिछले वर्षो में इसको लेकर कई आंदोलन भी हुए लेकिन निर्णय नहीं हो पाया। अब पुनः शिवराज सरकार की वापसी और उपचुनाव की आहट को देखकर अभी नहीं तो कभी नहीं के कारण मप्र सहायक शिक्षक/शिक्षक मोर्चा के बैनर तले एकजुट हो रहे हैं। श्री चाकनकर ने बताया कि लॉकडाउन के चलते फिलहाल भोपाल में कोई आंदोलन करना संभव नहीं। इसलिए मोर्चा से जुड़े सभी संगठनों के सहायक शिक्षक/शिक्षक हर संभाग में भाजपा सांसद/मंत्री और विधायकों को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन देकर पत्र लिखने का आग्रह कर रहे हैं।

विभाग की गलती से कनिष्ठ हुए उपकृत, वरिष्ठ हुए परिष्कृत

दिग्विजय सिंह शासनकाल में वर्ष 1994 में शिक्षकों के पद डाइंग कैडर घोषित होने के बाद पंचायती राज अधिनियम के अस्तित्व होने के बाद नगरीय और पंचायत विभाग से शिक्षाकर्मी और संविदा शिक्षक के रूप में भर्ती हुए और बाद में अध्यापक संवर्ग में शामिल हुए अध्यापकों को वरिष्ठ और पुराने शिक्षकों के ऊपर वरीयता देकर 2009 से लेकर 2013 तक लगातार पदोन्नति दी गई,और उन्हें बीएसी/सीएसी का पदभार बना दिया गया। वही पुराने सहायक शिक्षको,शिक्षको को उच्च योग्यता 30 से 40 वर्ष का शैक्षणिक अनुभव रखने के बावजूद पूरी तरह पदोन्नति से वंचित कर दिया गया, पदोन्नति के इंतजार में हजारों शिक्षक बिना पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो गए।

पदोन्नति में आरक्षण का विवाद कोर्ट में जाने से बड़ी मुश्किलें

वर्ष 2014 में उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा भर्ती पदोन्नति अधिनियम 2002 निरस्त किए जाने तथा मामला अपील में सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद से प्रदेश में पदोन्नति पूरी तरह बाधित हो गई है, जिसके विकल्प के रूप में योग्यता और क्रमोन्नति के आधार पर पदनाम देने की मांग उठाई गई।

ढाई साल पुरानी है मुख्यमंत्री की घोषणा, सामान्य प्रशासन विभाग विभाग भी दे चुका है निर्देश

मप्र सहायक शिक्षक/शिक्षक संयुक्त संघर्ष मोर्चा के प्रांत सह संयोजक दिनेश चाकणकर के अनुसार आज से ढाई साल पूर्व तत्कालीन सरकार में मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान ने 5सितम्बर 2017को भोपाल और दिसम्बर 2017को नसरुल्लागंज में हुए शिक्षक सम्मेलन में उच्च योग्यताधारी सहायक शिक्षकों, औरशिक्षकों को उनको प्राप्त क्रमोन्नति के आधार पर पदनाम देने की घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने की थी, जिसका पालन नहीं हो पाया, वही 9 मार्च 2020 को सामान्य प्रशासन विभाग भी क्रमोन्नति के आधार पर पदनाम देने के निर्देश सभी विभागाध्यक्षों को जारी किए है। मोर्चा के प्रांत संयोजक श्री सुभाष शर्मा के अनुसार प्रदेश का सहायक शिक्षक /शिक्षक अब आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं क्योंकि वह जानता है अगर उप चुनाव से पूर्व पदोन्नति /पदनाम की मांग पूरी नहीं होती है तो उसके हाथ में कुछ नहीं रह जाएगा, क्योंकि अगले विधानसभा चुनावों तक ज्यादातर शिक्षक सेवानिवृत्त हो जाएंगे।updatempcg/jaihindnews

Pradeep Jaiswal

Political Bureau Chief