
जुबेर कुरैशी

??? हजारों साल नरगिस अपनी बैनूरी पर रोती है तब कहीं जाकर होता है चमन मे दीदावर पैदा भारतीय पुलिस सेवा के सबसे सफल अधिकारी संजीव कुमार सिंह के लिए यह कहना गलत नहीं होगा। संजीव सिंह इस चमन के ऐसे फूल थे जो हमेश अपनी खुश्बु से सबको महकाते रहे। शायद ही कोई ऐस होगा जो संजीव सिंह को जानता हो और उनकी मुस्कुराहट पर फिदा नहीं हुआ हो। भोपाल पुलिस अधीक्षक रहते उन्होंने जो लोगों के दिलों में जगह बनायी थी वह कभी नहीं मिट सकती। मुझे आज भी याद है उनसे पहली मुलाकात जब मैं उस समय के डीआईजी भोपाल यशोवर्धन आजाद सर के आफिस में बैठा था उसी दौरान संजीव सिंह आजाद साहब से मिलने आए थे। आजाद साहब ने उनसे मेरा परिचय कराते हुए यूं कहा था कि यह है जनाब जुबेर कुरैशी भोपाल के सबसे छोटे क्राइम रिपोर्टर और मेरे छोटे भाई। संजीव सर ने गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए कहा था कि आप हमारे भी छोटे भाई हुए आज से और इस रिश्ते को उन्होंने बाखूबी निभाया भी। 1996 में जब मैथिली शरण गुप्ता सर का भोपाल एसपी के पद से तबादला हुआ तो संजीव सिंह साह को भोपाल का नया एसपी बनाया गया तो जब वह भोपाल एसपी का चार्ज लेने पहुंचे तो मैं भी कवरेज के लिये मौजूद था,चार्ज लेने से पहले जैसे ही उनकी नजर मुझ पडी वैसे ही बोले और छोटे कैसे हो। उनका यह मिलनसार व्यवहार और चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट लोंगो के दिलोें में हमेशा रहेगी। एसपी भोपाल रहते संजीव सिंह ने पुलिस और प्रेस के बीच के रिश्तो को जो उंचााई दी थी वो बाद के वक्त में फिर नहीं दिखाई दी। संजीव सिंह साहब के साथ उस समय के क्राईम रिपोर्टस का एक आत्मीय रिश्ता बन गया था। हर रविवार को क्राईम रिपोर्टर और भोपाल पुलिस के अफसरों को संजीव सिंह साहब कहीं ना कहीं पिकनीक पर लेकर जाते थे और यह दौर 1996 से 2000 त चला जब तक वह एसपी भोपाल रहे। मुझे याद है किस तरह मेरी शादी में उन्होंने मदद की थी और पूरे वक्त शादी में मौजूद रहे थे। शादी में किसी चीच की कमी नही हो इसका भी आपने पूरा ख्याल रखा था। आप ऐसे अचानक चले जाओगे कभी सोचा नहीं था। आप हमेशा सबकी यादों रहोगे सर।
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