सामान्य नागरिक
भोपाल. आप देख रहे हो कि देश में एक चलन बनता जा रहा है. जो चाहे सड़क को जाम कर सरकार के सामने अपनी बात रखने की कोशिश करता है. लेकिन क्या ये सहीं है. इसे कोई जायज ठहरा सकता है. नहीं, क्योंकि इससे आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. ये ठीक इस तरह है कि एक करे और सब भरे. मेरा मानना है कि सरकार के रूख के कारण ये हालात बन रहे है. जिस तरह से देश में नरेन्द्र मोदी की सरकार काम कर रही है, उससे लोग नाराज है. बात चाहे किसान की करे, बेरोजगार की करे या फिर आम शहरी की.
इस वजह से लोग सड़क पर उतरने को मजबूर हो रहे है. लोगों का विश्वास सरकार के प्रति कम होता जा रहा है. इसलिए लोग बिना राजनीतिक दलों के भी सड़क पर आ रहे है. वजह जानते है कि किसान क्यों सड़क पर आने को मजबूर हुआ है. दरअसल लॉक डाउन के दौरान मोदी सरकार ने जो किसान बिल पारित कराया था, उससे एक संदेश गया कि सरकार किसान और खेती को कार्पोरेट के हवाले करने का मन बना चुकी है. राजनीतिक दलों ने किसानों को ये समझाना शुरू कर दिया कि वर्तमान सरकार कार्पोरेट की सरकार है. सुट बूट की सरकार है.
इससे लोगों में अविश्वास की स्थिति बन गई. एक तर्क ये भी दिया जा रहा है कि पूर्व की कांग्रेस सरकार ने इस तरह के बिल लाने की बात अपने घोषणा पत्र में कहीं थी, इसलिए कांग्रेस को इस बिल का विरोध करने का हक नहीं है. लेकिन सवाल ये भी उठता है कि पूर्ण बहुमत की सरकार को कांग्रेस की कॉपी करने की आवश्यकता क्यों पड़ी. क्यों निर्मल भारत को स्वच्छ अभियान बनाया गया. क्यों संसद में मनरेगा को भ्रष्ट्राचार का जीता जागता स्मारक बोलने के बाद उसे सबसे अच्छी योजना बताया गया. क्यों आधार पर सवाल उठाते रहे और जब सरकार बनी तो हर योजना को आधार से लिंक कर दिया गया.
इन सब बातों को देखने के बाद लोग सरकार की नीयत पर सवाल करने लगे. ये पहला आंदोलन है, जिसके समर्थन में सत्ता और विपक्ष दोनों है. सत्ता पक्ष किसानों के बारे में एक शब्द गलत नहीं बोल रहा है. वहीं विपक्ष लगातार सत्ता पक्ष पर सवाल उठा रहा है. वैसे सरकार को सलाह है कि वह किसानों से बात करे और इस मुददे को हल करने पर अधिक ध्यान दे. सड़क जाम होने का नुकसान आम लोगों को ही होता है
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