550 घोष वादकों के जयघोष से गूंजेगा ग्वालियर

-प्रांतीय स्वर साधक संगम घोष शिविर के लिए 31 जिलों में हुई चयन प्रक्रिया
-ग्वालियर महानगर से 52 घोष वादकों का चयन

ग्वालियर UPDATE MPCG. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मध्यभारत प्रांत का चार दिवसीय प्रांतीय स्वर साधक संगम (घोष शिविर) 25 नवंबर से सरस्वती शिशु मंदिर केदारधाम परिसर शिवपुरी लिंक रोड, ग्वालियर पर होगा। घोष शिविर में शामिल होने वाले घोष वादकों का शनिवार को मध्यभारत प्रांत के 31 जिलों में एक साथ चयन प्रक्रिया हुई। जिसमें 550 घोष वादकों का चयन किया गया। इन सभी स्वयंसेवकों को स्वर साधक संगम में शामिल होने के लिए प्रवेशिका दी गई।
ग्वालियर विभाग संघचालक विजय गुप्ता ने बताया कि शिविर में शामिल होने वाले घोष वादकों के चयन के लिए मध्यभारत प्रांत के 31 जिलों में आठ टोलियां बनाई गईं थी। जिसमें पांच रचनाएं ध्वजारोपणम, भूप, मीरा, शिववरंजनी तथा तिलंग के जानकार शामिल किए गए। उक्त चयन प्रक्रिया में कुल 1087 घोष वादकों ने भाग लिया। जिनमें से मापदंड व प्रदर्शन के आधार पर 550 घोष वादकों का चयन किया गया। उन्होंने बताया कि ग्वालियर महानगर में सरस्वती षिषु मंदिर नदी गेट पर चयन प्रक्रिया हुई। जिसमें 52 घोष वादक चयनित हुए। उल्लेखनीय है कि चार दिन तक चलने वाले इस शिविर का समापन 28 नवंबर को होगा।

26 को आएंगे सरसंघचालक डाॅ. भागवत
उक्त शिविर में घोष वादकों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डाॅ. मोहन भागवत जी का मार्गदर्षन प्राप्त होगा। तीन दिवसीय प्रवास डाॅ. भागवत 26 नवंबर को रात्रि में ग्वालियर आएंगेे और 28 नवंबर तक ग्वाालियर में रहेंगे।

संघ में घोष की विकास यात्रा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिसे आर.एस.एस या संघपरिवार के नाम से भी जाना जाता है की स्थापना सन 1925 में हुई | संघ के विषय में एक रोचक तथ्य यह भी है कि संघ का नामकरण इसकी स्थापना के पश्चात सर्व सम्मति से हुआ | नामकरण की यह प्रक्रिया बड़ी स्वाभाविक और प्राकृतिक है क्योंकि बालक के जन्म लेने के बाद ही उसका नामकरण होता है | संघ कार्य का विस्तार भी देश,काल,परिस्थिति के अनुरूप समाजोपयोगी और प्रासंगिकता के अनुरूप बड़ी सहजता से होता गया | केवल व्यायाम और सामान्य चर्चा से आरंभ हुई शाखा पर धीरे-धीरे शारीरिक और बौद्धिक कार्यक्रम होने लगे | शारीरिक अर्थात फिजिकल एक्सरसाइज में धीरे-धीरे समता और संचलन का अभ्यास आरंभ हुआ | संचलन के समय शारीरिक विभाग ने इस बात पर विचार किया कि यदि संचलन के साथ घोष वाद्य का प्रयोग किया जाए तो इसकी रोचकता,एक रूपता,सांगिकता और उत्साह में चमत्कारिक परिवर्तन हो सकता है | स्वयंसेवकों की इच्छा शक्ति का ही परिणाम था कि संघ स्थापना के केवल दो वर्ष बाद 1927 में शारीरिक विभाग में घोष भी शामिल होगया | यह इतना आसान कार्य नहीं था | उस समय दो चुनौतियाँ थीं एक तो यह कि घोष वाद्य जोकि संचलन में काम आ सकें वे महँगे थे और सेना के पास हुआ करते थे | दूसरा यह कि उसके कुशल प्रशिक्षक भी सैन्य अधिकारी ही होते थे | चूँकि संघ के पास न तो इतना धन ही था कि वाद्य यंत्र खरीदे जा सकें और उस पर भी यह राष्ट्रभक्तों का ऐसा संगठन था जिसके संस्थापक कांग्रेस के आंदोलनों से लेकर बंगाल के क्रांतिकारियों के साथ काम कर चुके थे, इसलिए किसी सैन्य अधिकारी से स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित कराना बड़ा कठिन कार्य था | उस समय सैन्य अधिकारयों को केवल सेना के घोष-वादकों को ही प्रशिक्षित करने की अनुमति थी | इस चुनौती से निपटने के लिए संघ के संस्थापक डॉ.केशव बलिराम हेडगेवार जी के परिचित बैरिस्टर श्री गोविन्द राव देशमुख जी के सहयोग से सेना के एक सेवानिवृत बैंड मास्टर के सहयोग से स्वयंसेवकों को घोष वाद्यों का प्रशिक्षण दिलाया गया | शंख वादन के लिए मार्तंड राव तो वंशी के लिए पुणे के हरिविनायक दात्ये जी आदि स्वयंसेवकों ने शंख,वंशी,आनक जैसे वाद्य यंत्रों पर अभ्यास आरंभ किया | इस प्रकार संघ में घोष का एक आरंभिक स्वरुप खड़ा हुआ |
पाश्चात्य शैली के बैंड पर उनके ही संगीत पर आधारित रचनाएँ बजाने में भारतीय मन को वैसा आनन्द नहीं आया जैसा कि आना चाहिए था | तब स्वयंसेवकों का ध्यान इस बात पर गया कि हमारे देश में हजारों वर्ष पूर्व महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने पांचजन्य और धनुर्धारी अर्जुन ने देवदत्त बजाकर विरोधी दल को विचलित कर दिया था | भगवान कृष्ण के समान वंशी वादक संसार में कोई हुआ ही नहीं अतः हमें इन वाद्यों पर ऐसी रचनाएँ तैयार करनी चाहिए जिनमें अपने देश की नाद परंपरा की सुगंध हो | स्वर्गीय वापूराव व उनके साथियों ने इस दिशा में कार्य आरंभ किया | इस प्रकार राग केदार,भूप,आशावरी में पगी हुई रचनाओं का जन्म हुआ | कितने गौरव की बात है कि स्वयंसेवकों ने घोष वाद्यों को भी स्वदेशी नाम प्रदान कर उन्हें अपनी संगीत परंपरा के अनुकूल बनाकर उनका भारतीयकारण किया | इस क्रम में साइड ड्रम को आनक ,बॉस ड्रम को पणव, ट्रायंगल को त्रिभुज, बिगुल को शंख आदि नाम दिए गए जो कि ढोल,मृदंग आदि नामों की परंपरा में ही समाहित होते हैं |
घोष की विकास यात्रा में प्रथम अखिल भारतीय घोष प्रमुख श्री सुब्बू श्रीनिवास जी का नामोल्लेख करना भी अत्यंत समीचीन होगा | आपने अनेक वर्षों तक सतत प्रवास करके घोष वर्ग और घोष शिविरों के माध्यम से पूरे देश में हजारों कुशल घोष वादक तैयार किये | घोष वादकों में निपुणता और दक्षता की दृष्टि से अखिल भारतीय घोष शिविर आयोजित किये जाने लगे | श्री सुब्बू जी घोष के प्रति इतने समर्पित रहे कि सतत प्रवास के कारण उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगा किन्तु अंतिम साँस तक बिना रुके,बिना थके वे ध्येय मार्ग पर बढ़ते रहे |
परंपरागत वाद्य शंख,आनक और वंशी से आरंभ हुई घोष यात्रा आज नागांग,स्वरद एवं तूर्य आदि अत्याधुनिक वाद्यों पर मौलिक रचनाओं के मधुर वादन तक पहुँच गई है | घोष वादन में मौलिक और भारतीय नाद परंपरा को समृद्ध करने की यात्रा प्रथम रचना गणेश से आरंभ होकर लगभग अर्ध शतक पूर्ण कर निरंतर बढ़ती जा रही है | समाज इस बात पर गर्व कर सकता है सेना के सेवा निवृत्त घोष वादकों का सहयोग लेने वाला संघ-घोष अपने स्वयंसेवकों के अथक परिश्रम से इस अवस्था में पहुँच गया कि 1982 में भारत में संपन्न हुए एशियाड गेम्स के उद्घाटन समारोह में भारतीय नेवी दल ने स्वयंसेवकों द्वारा निर्मित रचना शिवराज का वादन कर श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध कर दिया | इसे विश्व स्तर पर प्रसारित प्रथम घोष रचना भी कहा जासकता है | इतना ही नहीं संघ के स्वयंसेवकों द्वारा निर्मित लगभग चालीस रचनाओं का वादन नेवी बैंड द्वारा किया जा चुका है |
आज संघ में घोष वादकों की संख्या लगभग सत्तर हजार के आस-पास है |
डॉ.रामकिशोर उपाध्याय
अ.भा.कवि एवं स्तंभकार

Pradeep Jaiswal

Political Bureau Chief

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