यही “मोदी-एरा” कहलायेगा ….सरकारें आएँगी जायेंगी …..

¤ डॉ. हितेष वाजपेई

पिछले ७ सालों से देश में वाकई एक विचित्र सा परन्तु नया राजनैतिक माहौल है …. भारत में लगभग १४ राज्यों में भाजपा की सरकारें और दो-तिहाई बहुमत से भाजपा की सरकारों की उम्मीद कभी कांग्रेस के “परिवार” ने नहीं की थी…भारत के जन-तंत्र ने एक बदलाव को व्यापक स्तर पर चुना…इस उम्मीद पर कि वह देश में कुछ सुखद “बदलाव” देखना चाहते हैं …मोदी सरकार ने लोगों को भरपूर संतुष्ट भी किया….चाहे काली कमाई के कुबेरों से “धना-दोहन” हो “नोटबंदी” के माध्यम से अथवा सभी व्यापारियों को टैक्स की “सुनिश्चितता और अनुशासन” में लाने की बात हो….

सरकार के वित्तीय संसाधन मजबूत होने लगे जिसका असर सबके लिए मकान और सबके लिए शौचालय जैसे अभियान में सफलता पूर्वक दिखा…फसलों के समर्थन मूल्य में भी दिल खोलकर इस राशि का उपयोग किया गया….आयकर विभाग में हुए सुधारों से जहाँ करचोरों पर शिकंजा कसा गया वहीँ आम मध्यमवर्गीय नागरिक को विभाग की जटिलताओं से मुक्त किया गया…सेनाओं को कई दशकों से रुके हुए आयुध सौदों से मजबूती मिली जिससे बालाकोट जैसी सफल सैन्य कार्यवाही पूरे आत्मविश्वास के साथ सैनिको ने पूर्ण की….

शनैः शनैः शताब्दी के सबसे बड़े फैसले को एक ही झटके में प्राप्त किया गया : धारा ३७० का समापन ! जिसने जहाँ पर देशभक्त समुदाय को गौरव का क्षण दिया वहीँ कांग्रेस को “निःशब्द” कर दिया… वह भी बिना हिंसा के पूरा हुआ….राम मंदिर निर्माण का उच्चतम न्यायालय का “निर्बाध और सटीक” निर्णय तो सोने पर सुहागा रहा….

बीच में कई चुनाव और कोरोना का आगमन देश में हुआ…राजनैतिक चुनौतियों और प्रशासनिक संकटों से गुजरते हुए हमने ७० सालों से बने कमज़ोर स्वास्थ्य-तंत्र का खामियाजा भी भुगता …बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए….सरकार के भी सभी संसाधन बौने-अधूरे साबित हुए…कांग्रेस ने अपने ५५ साल के नाकाम तंत्र की जिम्मेदारियों से मुक्त दिखाते हुए इस अवसर का मोदी सरकार पर वार कर लाभ भी उठाना चाहा…लोग मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से टूटे हुए थे….कहीं कहीं कांग्रेस के इन बयानों का असर भी असंतोष को हवा देता दिखा….परन्तु सरकार के नाकाफी प्रयास भी लोगों के मन में एक ईमानदार और संवेदनशील रवैये के रूप में दिल में जगह बनाते चले गए….

किसी भी अवस्था का चरम हमेशा नहीं रहता …. जेटली जी कहते थे कि शिखर पर घर नहीं बनाये जाते…इसलिए आज उस दौर से भाजपा की राज्य सरकारों की संख्या भी कम हुई…इसका अर्थ शायद कांग्रेस के क्षेत्रीय नेताओं पर तुलनात्मक रूप से ज्यादा विश्वास किया जाना था या भाजपा सरकारों के दौरान “लोअर-ब्यूरोक्रासी” का निरंकुश व्यवहार ज्यादा था जिसके “बिल” भाजपा-सरकारों के नाम फटे और कई राज्यों में सरकारें बदलीं…

मोदी सरकार को पूर्ण बहुमत से दूसरा दौर मिलना भी एक इतिहास बना गया जिससे प्रधानमन्त्री के इरादों में और द्रढ़ता आई …. उन्हें लगा कि “गांधीवादी-समाजवाद” के रास्ते पर चलना लोगों को पसंद आया ….उन्हें अहसास हुआ कि भारत के शासन को और व्यापार को कुछ “परिवारों” से मुक्त कर आम आदमी को शामिल होने का अवसर देने वाले उनके फैसले लोगों को पसंद आये….लोगों ने मध्यम-वर्ग को राहत और सक्षम-वर्ग को और ईमानदार बनाने की “व्यवस्था” को बनाने वाली सरकार को पसंद किया है जिनके “मन की बात” शायद पूंजीवादी मीडिया के प्रतिनिधि भी कभी नहीं उठा पाते थे….मोदी सरकार ने “काम” पर ध्यान देने वाले जन-प्रतिनिधियों को अपनी कैबिनेट में चुना जो अपने “पोस्टर” पर कम और अपने “रोस्टर” पर ज्यादा ध्यान दें ….यह भी लोगों को पसंद आया….

एक अच्छा नेता वो होता है जो लोगों से काम करा ले…आगे के लिए देश को समर्थ और सक्षम नेता तथा तंत्र दे सके….सबकी जुबान पर यही बात है कि अकेले मोदी सरकार ही तो सब कुछ नहीं कर सकेगी…इसलिए अनुगामी राज्य-सरकारें भी इस दिशा में कदम-ताल करने का प्रयास कर रहीं हैं …इन सरकारों में कई गैर-भाजपाई सरकारें भी हैं जो “मोदी-नीति” को समझ कर उसका लाभ ले रहीं हैं…कुल मिलाकर देश बन रहा है…७० सालों में एक नैसर्गिक विकास की कार्य-पद्धति को “सुनियोजित और समेकित” प्लान के तहत लक्ष्य-गत रूप से किया जाने लगा है…बहस आंकड़ों पर ज्यादा और “सांप्रदायिक-जातिगत-चालु-राजनीति” पर शायद अब कम होगी….जो सरकारें “लोकोपयोगी” साबित होंगी वे पुनः चुनी जायेंगी …..

नए दौर का नया राजनैतिक माहौल है परन्तु यह सब भारत की चुनावी राजनीति में एक नए मोड़ के रूप में भविष्य के इतिहासकार देख पायेंगे ….

यही “मोदी-एरा” कहलायेगा ….

सरकारें आएँगी जायेंगी ….. ? लेखक बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं

Pradeep Jaiswal

Political Bureau Chief