कलम तुम बन्द करो सब लिखना….

•ओ.पी. शर्मा

एक समय था, जब पत्रकारिता समाज और सरकार को दिशा देने का काम करती थी। मूल्यवान समाज का निर्माण करने की दिशा में शब्दों जे माध्यम से अलख जगाना पत्रकारिता का उद्देश्य था। इसीलिए इसे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की संज्ञा से नवाजा गया। आज पत्रकारिता एक मिशन की बजाय व्यवसाय अधिक हो गई है और उसका नैतिक मूल्यों से पूरी तरह विलगाव हो गया है। बाजार ने संपादकों और संवाददाताओं की स्वतंत्रता को छीन लिया है। अब मालिक संपादक बन गए है। पत्रकारिता का बौद्धिक पहलू मृतप्राय है और बाजारू राक्षस हावी हो गया है। यह पूरी तरह से विज्ञापनों पर आश्रित हो गई है और बाज़ार के हाथों बिक गई है। आप पैसा देकर जिस तरफ भी चाहें उसे मोड़ा जा सकता है। पत्रकारिता आज शायद अपने सबसे खराब वक्त से गुज़र रही है। यह बड़े-बड़े और भ्रष्ट पूंजीपतियों के हाथ का एक खिलौना बनकर रह गई है। जन-जीवन से उसका सम्बन्ध पूर्णत: कट गया है। अत: आज पत्रकारिता के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या पत्रकारिता कभी पुन: नैतिक मूल्यों के हक़ में खड़ी हो सकेगी? आज की पत्रकारिता पर मेरा मत है…

“बिकती खुद को देखकर कलम रही चिल्लाय।
कैसे लिख दूं मौत को खुद की खुद से हाय।
खुद की खुद से हाय, मौत देखी नही जाती!
मेरे मरने की खबरे भी अब सत्य न मानी जाती।
कहे ओम यह दौर अजब, गिरती शब्दों की महिमा।
वक्त पुकारे आज कलम तुम बन्द करो सब लिखना।”UpdateMpCg/Bhopal

Pradeep Jaiswal

Political Bureau Chief